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जैन दर्शन .
वगैरह गुण नष्ट हो जानेसे उस दशाको प्राप्त हुये प्रात्मामें विशुद्ध ज्ञान या विशुद्ध सुख किस तरह हो सकता है ? क्योंकि मोक्षका सुख इस प्रकार है'जीवके नव विशेष गुण हैं, वुद्धि, सुख, दुख, इच्छा, धर्म, अधर्म, प्रयत्न, भावना और द्वेष । इन नव गुणोंका सर्वथा नाश होनेपर जीव अपने स्वरूपमें आ सकता है और उस जीवका अपने स्वरुपमें आना यही मोक्ष है। ये नव गुण एक सन्तानरुप होनेसे दीपक सन्ततिके समान सर्वथा नाश पा सकता हैं।
इस प्रकारके अनुमानमें किसी तरह का दूपण नहीं आ सकता एवं इसके सामने इसका विरोध करनेवाला भी कोई प्रमाण नहीं मिलता । इन गुणोंकी सन्ततिका नाश होनेके कारण इस तरह हैंनिरन्तर शास्त्रका अभ्यास करनेसे आत्माको तत्वज्ञानकी याने अपने स्वरूपकी और संसारके प्रपंचकी खबर पड़ती है, ऐसा होनेसे उसका मिथ्याज्ञान नाश पाता है, मिथ्याज्ञानका नाश होनेसे उसके फलरुप राग द्वेषादिका विलय होता है। रागद्वेपादिका नाश होनेसे तन, मन, और वचनकी नवीन प्रवृत्तिका निरोधं होता है और उस निरोधके कारण धर्म एवं अधर्मकी नवीन उत्पत्ति होती अटकती है। जो धर्म और अधर्म पहले किये हुये हैं उनका क्षय उनके द्वारा बने हुये शरीर और इन्द्रियों तथा शारीरिक और इन्द्रियजन्य सुखादि फल भोगनेसे हो जाता है। एवं जो धर्म और अधर्म अवसे पीछे भूतमें हुये हैं उनका क्षय भी उनके द्वारा मिलते हुये उनके फलोंका उपभोग करनेसे होता है । इस प्रकार इन गुणोंकी. सन्ततिका नाश होनेका क्रम है और इनमें इन्द्रियोंसे उपन्न होते हुये बुद्धि, सुख और दूसरे भी गुण आ जाते हैं। इस तरह मोक्षकी दशामें अात्मा बुद्धि या सुख वगैरह रहनहीं सकते तो फिर आत्माको अनन्त सुखवाला और अनन्त शान वान् किस तरह माना जाय ? इस तरहके वैषेशिक मतवालोंके प्रश्नका उत्तर ऐसे समझना चाहिये- .
उपरोक्त जो बुद्धि आदि नव गुणों के नाश होनेका निवेदन किया है, उसके सम्बन्धमें हेम यह पूछना चाहते हैं कि क्या वे गण ·