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भविष्यति वा। कालाणोस्तु न तादृशोपचारसभावना तस्य सर्वदा पृथगवस्थानात् ।
ननु जीवादीनि पडद्रव्यारिण भवद्धि. प्रोक्तानि पर नैतत् परिगणनमविकलम् द्रव्यस्य पृथिव्याजोवाय्वाकाशकालदिगास्मभेदेन नवविधत्वादितिचेन्न, पृथिव्यप्तेजोवायूमनांसि पुद्गलद्रव्येऽन्तर्भवंति, रूपरसगन्धस्पर्शवत्त्वात् । वायुमनसो रूपादियोगाभाव इति न वाच्यं । वायुस्तावद् पादिमान स्पर्शवत्वाद् घटवत् । चक्षुरादिकरणग्राह्यत्नाभावाद्र पाद्यभाव इति चेत् परमाण्वादिष्वपि रूपाभावः स्यात् ।
मनो द्विविध, द्रव्यमनो भावमनश्च । तत्र भावमनो ज्ञान तस्यात्मगुणत्वादात्मन्यन्तर्भावः । द्रव्यमनश्च रूपादियोगात्
रूप था अथवा स्कन्ध रूप हो जायगा। कालाणु के तो वैसे उपचार की भी संभावना नहीं है। क्योंकि वह सदा अलग ही रहता है। ___ शंका:-आपने जीवादिक छह द्रव्य कहे है, लेकिन यह संख्या अधूरी है । पृथ्वी जल अग्नि वायु पाकाश काल दिशा प्रास्मा और मन के भेद से द्रव्य के तो नो प्रकार हैं।
समाधान:-ऐसा नहीं है, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और मन इन पांचों का तो पुद्गल द्रव्य मे अन्तर्भाव हो जाता है, रूप रस गन्ध स्पर्शवान होने से । वोयु मौर मन रूपादिमान नही है ऐमा कहना भी ठीक नहीं । वायु रूपादिमान है स्पर्शमान् होने से घट की तरह । चक्षु वगैरह इन्द्रियों से ग्रहण में नही आता इस लिए रूपादिमान नहीं, ऐसा मानने पर तो परमारणु वगैरह में भी रूप का अभाव हो जायगा। ___ मन दो तरह का है-द्रव्यमन और भावमन । उनमे भावमन ज्ञानरूप है और ज्ञान प्रात्मा का गुण है । अत: भावमन का आत्मा मे अन्तर्भाव हो जाता है। और द्रव्यमन रूपादि