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तथा सकलजीवपुद्गलस्थितय साधारणवाह्यनिमित्तापेक्षा युगपाविस्थितित्वात् एक कुण्डाश्रयानेकवदरादिस्पितिवत् । यः गाधारणं निमित्तं स धर्मोऽधर्मश्च । ताभ्या विना तद्गतिस्थितिकार्यस्यासंभवात् ।
परस्परं पदार्थाः गतिस्थितिपरिणामहेतवः इति चेन्न, परस्पराभयप्रसंगात् । ननु पृथिव्यादय एव साधारणनिमित्तानि गतिस्थित्यो. इतिचेन्न, गगनवर्तिपदार्थगतिस्थितीनाम् तदसंभवात् । ननु नभ एव साधारणं निमित्तं तह्य स्तु इतिचेन्न, तस्यावगाहनिमित्तत्वप्रतिपादनात् । तस्यैकम्यैवानेककार्यनिमित्त
उस सरोवर का जल गमन करने में सहायक होता है, उसी मांति धर्म द्रव्य भी जीव और पुद्गलो के गमन मे सहायक हैं। इसी तरह स्थिति स्वभाव वाले समस्त जीव और पुद्गल साधारण बाह्य निमित्त की अपेक्षा रखने वाले हैं, युगपद् भावी स्थिति वाले होने से । एक कूडे में रखे हुए अनेक बेर वगैरह फलों की स्थिति की तरह । जो साधारण निमित्त है वह धर्म और अधर्म है। इन दोनो द्रव्यों के विना जीव और पुद्गलों का गति और स्थिति रूप कार्य नहीं हो सकता। __ आपस मे पदार्थ ही गति और स्थिति रूप परिणमन में कारण है-ऐसा मानना ठीक नही । इससे तो अन्योन्याश्रय दोष का प्रसंग होगा। पृथ्वी जल वगैरह ही गति मौर स्थिति में साधारण कारण हैं ऐसा कहना भी अनुपयुक्त है। प्राकाग में रहने वाले पदार्थो की गति और स्थिति में वे कारण कैसे होगे? आकाश को गति और स्थिति का साधारण कारण मानना भी उपयुक्त नही-उसको तो जगह देने का साधारण निमित्त कहा है। उस अकेले आकाश को ही अनेक कार्यों का कारण माना जाय तो अनेक व्यापक पदार्थों की कल्पना व्यर्थ
का प्रसंग होगाक नहीं । इससे
तोरणमन में