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( १८२ ) सांकल्पिकी । हिंसासंकल्पजन्यत्वात् । हिंसासंकल्पाभावेऽपि या गृहिणोऽनिवार्या हिंसा भवति साऽसांकल्पिकी। सा च त्रिविधाप्रारंभजन्या, उद्योगजन्या, विरोधजन्या चेति । पञ्चसूनासु गृहनिर्माणादिषु च या गृहस्थस्याऽनिवार्या हिसा साऽऽरभजन्या । जीविकोपायस्वरूपन्यायानुकुलाहिंसकोद्योगजन्या द्वितीया' । इतराक्रमणे स्वस्वकीयरक्षार्थ याऽनिकाय हिसा जायते सा विरोधजन्या। अासु चतसृषु हिसामु गृही केवलां सांकल्पिकी हिसां प्रत्याख्याति । अपरास्तिस्रस्तु तज्जीवनोपयोगित्वाल हातु शक्यन्ते गृहावस्थापर्यन्तम् ।
इमे चत्वारो हिसाया भेदा गृहस्थापेक्षया । मुनिजीवने ताहशभेदासंभवात् । यस्याऽऽत्मानं विहाय न किमपि स्वं स्वकीयं वा
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हिसा है; क्योकि वह हिंसा इरादतन होती है। हिसा करने का इरादा न होने पर भी गृहस्थी के द्वारा जो हिंसा टालना सभव नही वह असाकल्पिकी हिसा है। वह तीन प्रकार की है। प्रारभी, उद्योगी और विरोधी । चक्की, चूला, अोखली, वहारी तथा परीडा जो गृहस्थी के पाच सून है उनमें तथा घर वगैरह बनवाने मे अनिवार्य हिंसा होती है वह प्रारभी हिंसा है। जीविका चलाने के लिए न्यायानुकूल अहिंसक व्यापार में जो हिसा होती है वह उद्योगी है। दूसरों के द्वारा आक्रमण किए जाने पर अपनी और अपनो की रक्षा के लिए जो अनिवाय हिंसा हो जाती है वह विरोधी हिसा है। इन चारों प्रकार की हिंसाओ मे से गृहस्थी केवल सकल्पी हिसा का त्याग करता है। बाकी तीन तो जब तक वह गृहस्थावस्था मे है उसके जीवन के लिए उपयोगी होने से वह उन्हें छोड़ नहीं सकता।
हिंसा के ये चार भेद गृहस्थ जीवन के लिये ही है। मुनि जीवन में वैसे भेद सभव नहीं है जिसके अपनी आत्मा के