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। ११६ ) गव्यवच्छेदकंवकार स्वीकृतः । ज्ञानमर्थ गहात्येवेत्यादौ क्रियासङ्गतत्वेऽपि तादृशैवकारस्वीकारात् ।
स्याच्छब्दस्य चानेकान्तविधिविचारादिष्वनेकेश्वर्थेषु विद्यमानेषु विवक्षावशादत्रानेकान्तार्थो गृह्यते। अनेकान्तत्वं नामानेकधर्मात्मकत्वं । न च-स्याच्छब्देनैवानेकान्तस्य बोधनेऽस्त्यादिवचमनर्थकमितिवाच्य । स्याच्छब्देन सामान्यतोऽनेकान्तबोधमेऽपि विशेषरूपेण वोधनार्थमस्त्यादिशब्दप्रयोगात् ।
घट. स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावैरस्ति, परद्रव्यक्षेत्रकालभावश्च
होते हुए भी प्रयोग व्यवच्छेद बोधक ही स्वीकार किया है। कही कही पर क्रिया के साथ प्रयुक्त एवकार को भी प्रयोग व्यवच्छेद वोधक अर्थ में देखा जाता है। जैसे ज्ञान किसी न किसी अर्थ को ग्रहण करता ही है, इस उदाहरण में एवकार को क्रिया संगत होते हुए भी उसे प्रयोग व्यवच्छेद बोधक ही स्वीकार किया है। .
स्यात् शब्द के यद्यपि अनेकान्त, विधि, विचार आदि अनेक अर्थ सभव होते है तो भी वक्ता की विशेप इच्छा से यहां अनेकान्त अर्थ का ही ग्रहरण किया गया है। अनेकान्त शब्द का अर्थ अनेक धर्मात्मक या अनेक धर्म स्वरूप है। यहा कोई यह कहे कि जब स्थात् शब्द से ही अनेकान्त का ज्ञान हो जाता है तो अस्ति वगैरह शब्द व्यथं होंगे- ऐसा कहना समीचीन नहीं; क्योकि म्यात् शब्द से अनेकान्त का बोध सामान्य रूप से अवश्य हो जाता है फिर भी विशेष ज्ञान हेत अस्ति आदि शब्दो का प्रयोग सार्थक है। __ शंका-घट स्व द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से है पर द्रव्य-क्षेत्रकाल-भाव में नहीं, इसका क्या अभिप्राय है?