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नन्वेनमधिकसंख्याव्यवच्छेदेऽपि न्यून संख्याव्यवच्छेदः कथं सिद्धयेत् ? सत्त्वाऽसत्त्वयोर्भेदाभावात् । यत् स्वरूपेण सत्त्व तदेव पररूपेरणाऽसत्त्वं तथा च न प्रथमद्वितीयभंगो घटेते ततस्तृतीयादिभगाभावात् कुतः सप्तभंगीतिचेत् -
अत्रोच्यते स्वरूपाद्यवच्छिन्नसत्त्वं पररूपाद्यवच्छिन्न मसत्त्वमित्यवच्छेदकभेदात्तयोर्भेदसिद्ध:, अन्यथा स्वरूपेणेव पररूपेणाऽपि सत्त्वप्रसंगात् । पररूपेणेव स्वरूपेणाऽप्य सत्त्वप्रसंगात् । एवमेवेतरभंगेष्वपि भिन्नत्वं ज्ञातव्यं । नहि सत्त्वमेव वस्तुनः स्वरूप, स्वरूपादिभिः सत्त्वस्येव पररूपादिभिरसत्त्वस्यापि प्रति
शका - इस प्रकार सात संख्या से अधिक संख्या का निराकररण हो जाने पर भी न्यून संख्या का प्रसंग तो रहेगा ही क्योंकि सत्त्व तथा असत्त्व का भेद सिद्ध नही होता । जो पदार्थ स्वचतुष्टय से सत्त्व रूप है वही परचतुष्टय से असत्त्व रूप है | अतः सत्त्व रूप माना तो प्रसत्त्व की जरूरत नही और असत्त्व मानों तो सत्त्व की दरकार नही । इस प्रकार जब प्रथम तथा द्वितीय भग ही नही बनते तो तृतीयादि भंग वनेगे ही कैसे अतः सप्तभंगी कैसे सिद्ध हो सकती है ।
समाधान - इस शंका का उत्तर यह है कि स्वरूप आदि से सयुक्त सत्त्व कहाता है और पररूप आदि से सयुक्त प्रसत्त्व कहा जाता है । इस प्रकार स्वरूपादित्व तथा पररूपादित्व इन दोनो पृथक् पृथक् धर्मो के भेद से सत्त्व तथा प्रसत्त्व में भेद सिद्ध है । अन्यथा स्वरूप की तरह पररूप से भी सत्त्व का प्रसंग उपस्थित होगा अथवा पररूप से असत्त्व के समान स्वरूप से भी असत्त्व कहा जाने लगेगा । इसी तरह अन्य भंगों मे भी भिन्नता जाननी चाहिए। वस्तु का स्वरूप मात्र सत्त्व नही है; क्योकि स्वरूपादि से सत्त्व की तरह पररूपादि से असत्त्व की भी प्रतीती होती है और न मात्र प्रसत्त्व ही वस्तु