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( ७७ ) अनुमानप्रामाण्यसमर्थनम् -साधनात साध्यविज्ञानमनमानं । यथा पर्वतो वह्निमान् घूमादिति । साधनमन्यथानुपपत्येकलक्षणं, . साध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेतुरिति प्रोक्तत्वात् । साध्य तु इष्टाबाधितासिद्धरूप । तथा चाविनाभावैकलक्षणसाधनज्ञानाद् यत् साध्यज्ञानं भवति तदनुमानं । तस्य द्वौ भेदौ, स्वार्थानुमान। पराथोनुमानविकल्पात् । स्वप्रत्तिपत्तिहेतुः स्वार्थानुमानं परप्रतिपत्तिहेतुश्चपरार्थानमानम् । स्वयमेव निश्चिताद् धूमादयं प्रदेशो वह्निमानितिज्ञानं यदा भवति तदा तत् स्वार्थानुमानं प्रोच्यते । अस्य स्वार्थानुमानस्य श्रीणि अङ्गानि-धर्मी, साध्यं, साधनञ्च । तत्र साधन गमकत्वेनाङ्ग, साध्यं गम्यत्वेन, धर्मी तु साध्यधर्मा
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not अनुमान प्रमाण का समर्थन - 1080
साधन से साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते है। जैसे पर्वत अग्निवाला है धूमवाला होने से । अन्यथानुपपत्ति रूप से निश्चित होना अर्थात् साध्य के बिना न होना यही एक मात्र साधन का लक्षण है। जिसका साध्य के साथ अविनाभाव निश्चित है उसे ही हेतु कहा गया है । इष्ट, अबाधित और असिद्ध को साध्य कहते है। इस तरह अविनाभाव लक्षण वाले साधन के ज्ञान से जो साध्य का ज्ञान होता है वह अनुमान है । उसके दो भेद है, स्वार्थानुमान और परार्थानुमान । परोपदेश के विना स्वत: ही साधन से साध्य के ज्ञान को स्वार्थानुमान कहते है और दूसरों के उपदेश के द्वारा साधन से साध्य के ज्ञान को परार्थानुमान कहते है । अपने आप ही निश्चित धूम से यह प्रदेश अग्नि वाला है ऐसा ज्ञान जव होता है तव वह स्वार्थानुमान कहलाता है। इस स्वार्यानुमान के तीन अंग है-धर्मी, साध्य और साधन । साधन गमक होने से, साध्य गम्य होने से और धर्मी साध्य धर्म