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जैन दर्शन में आचार मीमांसा के ये पांच रूप (पांच द्रव्य) और जीव, ये छह सत्य हैं। ये विभाग-सापेक्ष स्वरूप सत्य हैं।
आस्रव (बन्ध-हेतु ), संवर (बन्धन-निरोध ) निर्जरा (बन्धन-क्षय हेतु)ये तीनो साधन-सत्य हैं। मोक्ष साध्य-सत्य है । बन्धन-दशा में आत्मा के ये चारो रूप सत्य हैं। मुक्त-दशा में प्रास्तव भी नहीं होता, संवर भी नहीं होता, निर्जरा भी नहीं होती, साध्यरूप मोक्ष भी नही होता, इसलिए वहाँ आत्मा का केवल आत्मरूप ही सत्य है । __ आत्मा के साथ अनात्मा ( अजीव-पुद्गल ) का सम्बन्ध रहते हुए उसके बन्ध, पुण्य और पाप से तीनो रूप सत्य हैं। मुक्त-दशा में बन्धन भी नहीं होता, पुण्य भी नही होता, पाप भी नहीं होता। इसलिए जीव वियुक्त-दशा में केवल अजीव ( पुद्गल ) ही सत्य है । तात्पर्य कि जीव-अजीव की संयोग-दशा में नव सत्य हैं। उनकी वियोग-दशा में केवल दो ही सत्य हैं।
व्यवहार-नय से वस्तु का वर्तमान रूप (वैकारिक रूप ) भी सत्य है । निश्चय-नय से वस्तु का त्रैकालिक (स्वाभाविक रूप ) सत्य है।