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जैन दर्शन में आचार मीमांसा,
बौद्ध दर्शन भी संसार का मूल राग-द्वेष और मोह या अविद्या-इन्हीं को मानता है १७१ नैयायिक भी राग-द्वेष और मोह या मिथ्याशान को संसार-बीज मानते हैं ११ सांख्य पांच विपर्यय और पतञ्जलि क्लेशों को संसार का मूल मानते हैं १९। संसार प्रकृति है, जो प्रीति-अप्रीति, और विषाद या मोह धर्म वाले सत्त्व, रजस और तमस् गुण युक्त है-त्रिगुणात्मिका है। .
प्रायः सभी दर्शन सम्यग् ज्ञान या सम्यग-दर्शन को मुक्ति का मुख्य कारण मानते हैं। बौद्धों की दृष्टि में क्षणभङ्गुरता का ज्ञान या चार आर्य-सत्यों का ज्ञान विद्या या सम्यग् दशन है। नैयायिक तत्त्व-ज्ञान,२० सांख्य२१ और योग दर्शन२२ भेद या विवेक-ख्याति को सम्यग्-दर्शन मानते हैं । जैन-दृष्टि के अनुसार तत्त्वों के प्रति यथार्थ रुचि जो होती है, वह सम्यग्-दर्शन है २३ ।