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१३०] जैन दर्शन में आचार मौमासा रहा है। इस संस्कार की पृष्ठभूमि में जैन दर्शन की महत्त्वपूर्ण देन है। कायिक और मानसिक अहिंसा और उसकी वैयक्तिक और सामाजिक साधना का सुव्यवस्थित रूप जैन तीर्थंकरो ने दिया, यह इतिहास द्वारा भी अभिमत है। निःशस्त्रीकरण (शस्त्र-परिज्ञा) ___ जीवन की सारी चर्याश्रो का प्रधान-स्रोत आन्म-चर्या है। उसके दो पक्ष हैं-प्राचार और विचार। आचार का फल विचार है ! विचार का सार आचार है। आचार से विचार का सम्वादन होता है, पोप मिलता है। विचार से प्राचार को प्रकाश निलता है।
आचार का प्रधान अंग निःशस्त्रीकरण है। पाषाण युग से अणुयुग तक जितने उत्पीड़क और मारक शस्त्रो का आविष्कार हुअा है, वे निष्क्रिय-शस्त्र (द्रव्य-शस्त्र ) हैं। उनमें स्वतः प्रेरित घातक शक्ति नहीं है। ___ भगवान् ने कहा-गौतम ! सक्रिय-शस्त्र (भाव-शस्त्र ) असंयम है । विध्वंस का मुल वही है। निष्क्रिय-शस्त्रों में प्राण फूंकनेवाला भी वही है । उसे भली-भाँति समझ कर छोड़ने का यत्न करना ही निःशस्त्रीकरण है। शस्त्रीकरण के हेतु
भगवान् ने कहा-यह मनुष्य (१) चिरकाल तक जीने के लिए, (२४) प्रतिष्ठा, सम्मान और प्रशंसा के लिए, (५) जन्म-मृत्यु से मुक्त होने के लिए, (६ ) दुःख-नुक्ति के लिए-शस्त्रीकरण करता है । प्रतिष्ठा का व्यामोह
"आज तक नहीं किया गया, वह करूंगा” इस भूल-भुलैया में फंसे हुए लोग भटक जाते हैं। वे दूसरों को डराते हैं, सताते हैं, मारते हैं, लूट खसोट करते हैं।
वे नहीं जानते कि मौत के करोड़ों दरवाजे हैं। जीवन दौड़ रहा है। वे नहीं देखते कि मौत के लिए कोई दिन छुट्टी का नहीं है। जीवन नश्वर है।