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कोई निर्माण करने वाला है और न किसी काल विशेष में इसका जन्म हुमा । यह अनादिकाल से ऐसा ही चला आ रहा है और अनादिकाल तक ऐसा ही चलता रहेगा। हमारी मान्यता गीता की उग मान्यता के अनुकूल है जिसमें कहा गया है "न कर्तृत्वं न कर्माणि, न लोकम्य सृजति प्रभु ।" प्रर्यात् परमात्मा ने न इस लोक की रचना की है और न वह इसका कर्ता-धर्ता है।
ऊपर जिन दो सिद्धान्तों का उल्लेख किया गया है, वे दोनों ही मम्पूर्ण रूप से प्रयोग की कमौटी पर पूरे नहीं उतरते । इस सम्बन्ध में हम नीचे दो वैज्ञानिकों के अभिमत उद्धृत करते हैं । अर्ल उबैल (Earl Ubal) अपने एक लेख में लिखते हैं कि कोई भी ज्योतिषी इस बात पर विश्वास नहीं करता कि जगत उत्पत्ति के सम्बन्ध में जितने सिद्धान्त विद्यमान हैं, इनमें से कोई भी यथार्थता को प्रकट करता है । जितने सिद्धान्त हैं, वे हमें केवल मत्य के निकटतम ले जाते हैं । (No astronomer believes that any current cosmology adequately describes the l'niverse. Thellieories are only approximations.)
इसी प्रकार एम आई टी (अमरीका) के डा० फिलिप नोरोमन कहते हैं -ज्योतिषियों ने जो अब तक परीक्षण किये हैं उनके आधार पर यह निर्णय नही किया जा सकता कि खगोल उत्पत्ति के भिन्न-भिन्न सिद्धान्तों में से कौनमा सिद्धान्त सही है। इस समय इनमें से कोई सा भी सिद्धान्त