SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आवाजें सुनाई दी, जो कृन्दनपूर्ण थीं। अभी तक वैज्ञानिक इस बात का पता नहीं लगा सके हैं कि ये आवाजें कहाँ से पा रही थी और इनका उद्गम क्या था। हमने इस लेख में यह दिखलाने की चेष्टा की है कि आधुनिक विज्ञान ने हमारे वायु मण्डल के भीतर मुख्यतः दो प्रकार के स्थानों का पता चलाया है । एक तो वह जहाँ सर्वदा बसन्त ऋतु छाई रहती है-जहाँ न धूल है, न प्रांधी, न बरसात । यह ऐमा स्थान है जिसके सम्बन्ध में वैज्ञानिकों का अभिमत है कि नव-विवाहित दम्पनियों के लिये हनीमून (Honey nioom) मनाने का यह मर्वयं प्ठ स्थान है। वायुमण्डल के दूसरे स्थान वे हैं जहाँ या तो अत्यधिक शीत हैइतना शीत कि वहाँ पाग भी जम जाता है, या वे स्थान है जहाँ अत्यधिक गर्मी है, घोर अन्धकार है और महादुर्गन्ध । इन स्थानों को यदि आप चाहें तो स्वर्ग और नरक की संज्ञा दे सकते हैं। इन क्षेत्रो में जीवात्मा रहती हैं अथवा नहीं, यह जानने का विज्ञानवादियों के पास कोई साधन नहीं है। प्रलं उबैल (Earl Ubell) ने Readers Digest मई १६६६ में पृष्ठ १३५ पर लिखा है कि कैम्ब्रिज रेडियो वेधशाला में हमने उन लोकों से आती हुई रहस्यमयी आवाजें सुनी हैं जिन्हें हम देख नही सकते । (“At Canıbridge a radio antenna has picked up the burble and squeak of worlds we can not see')
SR No.010215
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherG R Jain
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy