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दो शब्द अनेक वर्षो से अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद के महामन्त्री मेरे परम मित्र भाई उग्रसैन जी जैन का यह . अनुरोध चल रहा था कि मैं कालेज के विद्यार्थियों के लिए एक ऐसी पुस्तक जैन दर्शन पर लिखू जिससे उनका अपने धर्म में शृद्धान दृढ़ हो । इस सम्बन्ध में कई बार वे स्वयं पाकर मुझसे मिले और अपना अनुरोध दोहराया । इस बीच एक नई बात हुई। ___ग्वालियर के भाई कपूरचन्द जी बरैया M. A. साहित्यरत्न बड़े श्रद्धालु और धर्म प्रेमी व्यक्ति हैं । जब उन्होंने सुना कि मैं ग्वालियर छोड़कर मेरट जा रहा है तो उन्होंने यह इच्छा प्रकट की कि मैं विज्ञान और जैन धर्म सम्बन्धी जो अपने विचार समय-समय पर प्रकट करता रहा है उन्हें लिपिबद्ध करवा दूं । उनके आग्रह को मैं टाल नही सका । उन्होंने सर्दी की रातों में कई-कई घंटे बैठकर मेरे विचारों को सुना
और लिखा । वही संकलन आज आपकी सेवा में प्रस्तुत है। इसके लिये श्री कपूरचन्द जी धन्यवाद और बधाई के पात्र हैं । जैन धर्म में और भी अनेक विषयों का वैज्ञानिक विवेचन मिलता है । यदि सम्भव हुआ तो भविष्य में आपकी सेवा में भेंट करूंगा। __ मैं बड़ा आभारी हूंगा यदि पाठक इस पुस्तक के सुधार के लिये अपने उपयोगी सुझाव अथवा रचनात्मक पालोचना भेजने की कृपा करेगे। २२३ थापरनगर मेरठ
जी. आर. जैन १ जुलाई १९७१