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स्थान पर एत्रित हुये । जिसने हाथी के पांव पर हाथ फेरा था वह कहने लगा - हाथी खम्भे के समान होता है । जिसके हाथ में उसकी पूंछ आई थी, उसने हाथी को रस्सी के समान बनाया । जिसने कान को टटाला था वह उसे सूप के समान बताने लगा । इसी प्रकार सातों अंधों ने अपनी-अपनी सूझ के अनुसार हाथी के स्वरूप का वर्णन किया । वास्तविकता यह है कि सानों वणन एक जगह एकत्रित करने पर ही हाथी का सम्पूर्ण वर्णन बन सकता है। एक का वर्णन दूसरे से मेल न खाना हुप्रा भी अपनी-अपनी दृष्टि से सही है । हम कहेंगे कि हाथी के पांव खम्भे के मग होते हैं, उसकी पूंछ रस्मी जैमी होती है, उसके कान सूप के समान होते हैं इत्यादि । इससे सिद्ध होता है कि किसी भी वस्तु का सम्पूर्ण वर्णन करने के लिये उसे भिन्न भिन्न दृष्टिकोणों से वर्णन करना पड़ेगा। यदि किसी वस्तु का वर्णन पांचों इन्द्रियों और मन के श्राश्रय से भी किया जाय तो भी एक ही वस्तु का वर्णन भिन्न-भिन्न पुम्पों द्वारा भिन्न-भिन्न ही होगा। यदि दस व्यक्ति अपने सामने बैठे हुये किसी अन्य व्यक्ति की आकृति का वर्णन लिखने बैठ जायें तो उनका वर्णन एक दूसरे से नही मिलेगा । सामने बैठे हुये मनुष्य की प्रकृति तो एक ही है किन्तु दम व्यक्ति उस श्राकृति का दस तरह से वर्णन करेंगे। इससे ज्ञात होता है कि हमारी भाषायें कितनी कमजोर है । आइन्सटाइन के शब्दों में 'परमात्मा की भपा गणित है । उसका प्रत्येक नियम गणित के सूत्रों में बँधा हुआ है और गणित के सूत्र कभी भी भूटे नहीं होते । संमार के सभी मनुष्य दो और दो का जोड़