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________________ ७. अनेकान्त अनेकान्त, स्याद्वाद, सातभङ्गी आदि शब्द लगभग एक ही बात को व्यक्त करने के लिये प्रयोग में लाये गये हैं। यह जैन-दर्शन की समार के लिये एक अनुपम देन है, जो दुनिया की किसी भी फिलासफी में नहीं पाई जाती। शंकराचार्य जैसे उद्भट विद्वान ने भी इसको समझने में भूल की और जैन साहित्य का बड़ा अपकार किया । संमार की कोई भी भाषा क्यों न हो वह अणं है और उसके द्वारा जो भी बात व्यक्त की जाती है उमका सर्वदा मर्वत्र एक ही अर्थ नहीं निकाला जाता। भिन्न-भिन्न चि के अनुमार एक ही बात के अनेक अर्थ लगाये जाते है। चंकि मंमार के पदार्थो में अनेक विरोधी गृण पाये जाते है इसलिये उनके गुणों का भिन्न-भिन्न दृष्टियों से वर्णन करने पर ही सम्पूर्ण वर्णन हो सकता है। उदाहरण के तौर पर कुचला या शखिया (Struchnin or Arsenic.) दो द्रव्य हैं। डाक्टर तथा वैद्य इनका प्रयोग शक्तिवर्द्धक (Tonic ) के रूप में करते हैं, किन्तु इनकी मात्रा अन्यन्त न्यून होती है। जब ये ही पदार्थ अधिक मात्रा में सेवन कर लिये जाये तो जीवन का अन्त हो जाता है ; अर्थात् अधिक मात्रा में वे जहर का काम करते हैं । अब कोई यह प्रश्न करे कि गंग्विया जहर है या शक्तिवर्द्धक पदार्थ ? तो उसका उत्तर यह होगा कि थोड़ी मात्रा में लेने से वह टॉनिक है और अधिक मात्रा में लेने से जहर ।
SR No.010215
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherG R Jain
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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