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________________ इम मिद्धान्त को एक और दिशा में लगाया गया है। हम जानते हैं कि कोई पदार्थ चाहे वह कितना ही गर्म क्यों न हो, रखा-रखा कालान्तर में ठण्डा हो जाता है। किन्तु सूर्य जो अविरल रूप से समस्त ब्रह्माण्ड को अपनी शक्ति दे रहा है, ममय के माथ माथ ठण्डा होना चाहिये था वह नहीं हो रहा है । यह एक विलक्षण बात है । मार्तण्ड-प्रभा के इस स्रोत को ढूढ़ने का प्रयाम पिछले ३०० वर्षों से बराबर होता पा रहा है। इस सम्बन्ध में समय-समय पर अनेक अटकलें लगाई गई किन्तु सम्पूर्ण समाधान किमी भी तरह सम्मव न हो सका। जब आइन्सटाइन का सिद्धान्त दुनिया के सामने आया तो अमेरिका के प्रो० बीथे (Bethe) ने इस समस्या को सदा के लिये हल कर दिया। उन्होंने बतलाया कि सूर्य के अन्दर हजारों हाइड्रोजन बम प्रतिक्षग छूटते रहते हैं जिसके कारण सूर्य का तापमान एक-मा बना रहता है और वह ठण्डा नहीं होता। सूर्य जो ८००० मील व्यामवाली हमारी पृथ्वी से १० लाख गुना बड़ा है उसमें अधिकांश मात्रा हाइड्रोजन गैस की है। हाइड्रोजन परमाणु का वजन १००८ है । हाइड्रोजन के ४ परमाणु मिलते हैं तब हीलियम गैस का एक परमाणु बनता है । हीलियम गैस के परमाणु का वजन ४ है किन्तु हाइड्रोजन के ४ परमाणु का वजन १.००८४४ अर्थात् ४.०३२ हुप्रा । अब प्रश्न यह सामने आता है कि जब हाइड्रोजन
SR No.010215
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherG R Jain
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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