SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है । परमाणु इतना छोटा होता है कि यदि हाइड्रोजन के २५ करोड़ परमाणु एक से दूसरे को सटाकर एक सीधी रेखा में रख दिये जायें तो उस रेखा की लम्बाई केवल एक इञ्च होगी। इसी तरह ४० हजार शंख (२१ अंक प्रमाण) हाइड्रोजन के परमाणु का तौल केवल एक खसखस के दाने के बराबर होता है। एक परमाणु आकाश के जितने स्थान को घेरता है उनको जैनाचार्यों ने 'प्रदेश' कहा है । किन्तु इसके साथ-साथ यह भी कह दिया है कि विशेष परिस्थितियों में एक प्रदेश के अन्दर अनन्त परमाण भी समा सकते हैं । इससे प्रगट होता है कि जैनाचार्यों को अण के खोखलेपन (Atom beeing hollow) का ज्ञान था क्योंकि उसके खोखला होने की अवस्था में ही एक परमाणु के अन्दर दूसरा परमाणु प्रवेश कर सकता है। 'सर्वार्थमिद्धि' की टीका में इसी बात को सूक्ष्म अवगाहन शक्ति का नाम दिया है। जब एक ही प्रदेश में बहुत से परमाणुओं का समावेश हो जाता है तो परमाणुओं के न्यूक्लियस एक ही स्थान पर केन्द्रित हो जाते हैं। जैमा कि हम ऊपर कह आये हैं परमाणुओं का सारा भार न्यूक्लियस में ही केन्द्रित रहता है, तो तथोक्त न्यूक्लियाई (Nucleii) के केन्द्रीकरण के कारण एक अत्यन्त भारी और ठोस पदार्थ की उत्पत्ति होती है, जिसे साइन्स की भाषा में न्यूक्लियर मैटर (Nuclear Matter) कहते हैं और बोलचाल की भाषा में वज्र कह सकते हैं । पानी से चांदी लगभग
SR No.010215
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherG R Jain
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy