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________________ और रक्ष गुणों के कारण विद्युत की उत्पति होती है । इससे स्पष्ट हो जाता है कि स्निग्ध का अर्थ चिकना और मक्ष का अर्थ खुरदग नहीं है । ये दोनों शब्द वास्तव में विशेष (rechnica.) अर्थों में प्रयोग किये गये हैं। जिस तरह एक अनपढ़ मोटर ड्राइवर बैटरी के एक तार को ठंडा और दूसरे तार को गरम कहता है (यद्यपि उनमें से कोई तार न ठंडा होता है और न गरम) और जिन्हें विज्ञान की भाषा में पोजिटिव व नगेटिव (Positive and Negative) कहा जाता है, ठीक उसी तरह जैनधर्म में स्निग्ध और मक्ष शब्दों का प्रयोग किया गया है । डा० बी एन. मील (B. N. Fe५}) ने अपनी केम्ब्रिज से प्रकाशित पुम्नक पोजिटिव साइन्मिज ग्राफ एनशियन्ट हिन्दूज (Positive sciences of Ancient Hindus) में स्पष्ट लिखा है कि जैनाचार्यों को यह बात मालूम थी कि भिन्न-भिन्न वस्तुओं को आपस में रगड़ने से पोजिटिव और नेगेटिव बिजली उत्पन्न की जा सकती है। इन सब बातों के समक्ष, इसमें कोई सन्देह नहीं रह जाता कि स्निग्ध का अर्थ पोजिटिव और रुक्ष का अर्थ नेगेटिव विद्युत है। सर अरनेस्ट रदर फोर्ड ( Earnest Rutherford) जिन्हें फादर फि एटम (Father of the Atom) कहा जाता है, अपने प्रयोगों द्वारा असन्दिग्ध रूप से यह सिद्ध कर दिया है कि प्रत्येक एटम में चाहे वह किसी भी वस्तु का क्यों न हो, पोजिटिव और नेगेटिव बिजली के कण भिन्न-भिन्न संख्या में मौजूद हैं । लोहा चाँदी सोना, तांबा आदि सभी द्रव्यों के एटमों में यही रचना पाई जाती है
SR No.010215
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherG R Jain
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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