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इस प्रकार महावीर निर्वाण के ५८१ वर्ष व्यतीत हुए । उसके बाद पुष्पमित्र बोर नाहड़ का राज्यकाल २४ वर्ष का रहा । तदनन्तर (५८१ + २४ -६०५ वर्ष बाद) शक संवत् की उत्पत्ति हुई। आगे भ. महावीर निर्वाण के ९८० वर्ष पूर्ण हो जानेपर महागिरि की परम्परा में उत्पन्न देवलिंगणि समा श्रमण ने "कल्पसूत्र" की रचना की।
दिगम्बर परम्परानुसार' जिस दिन भ. महावीर का परिनिर्वाण हुमा, उसी दिन गौतम गणधर ने केवल ज्ञान प्राप्त किया । गौतम के सिद्ध हो जाने पर सुधर्मा स्वामी केवली हुए । सुधर्मा स्वामी के सिद्ध हो जाने पर जम्बूस्वामी अन्तिम केवली हुए । इन तीनों केवलियों का काल ६२ वर्ष है उनके बाद नन्दि (विष्णु), नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु प्रथम ये पांच श्रुत केवली हुए जिनका समय १०० वर्ष है । उनके बाद विशाख, पोष्ठिल, क्षत्रिय, जयसेन, नागसेन, सिद्धार्थ, धृतिसेन, विजय, बुदिल, गंगदेव और सुधर्म (धर्मसेन) ये ग्यारह आचार्य क्रमशः दश पूर्वधारी हुए । उनका काल १८३ वर्ष है । उनके बाद नक्षत्र, जयपाल, पाण्डु, ध्रुवसेन और कंस ये पांच आचार्य ग्यारह अंग के धारी हुए । उनका समय २२० वर्ष है। उनके बाद भरत क्षेत्र में कोई भी आचार्य ग्यारह अंग का धारी नहीं हुआ। तदनन्तर सुभद्र, यशोभद्र, भद्रबाहु द्वितीय और लोह (लोहार्य) यं चार आचार्य आचारांग के धारी हुए । ये सभी आचार्य शेष ग्यारह अंग और चौदह पूर्व के एक देश के ज्ञाता थे । उनका समय ११८ वर्ष होता है । इस प्रकार गौतम गणधर से लेकर लोहाचार्य पर्यन्त कुल काल का परिमाण ६८३ वर्ष हुमा । अहंबली आदि आचार्यों का समय इस काल परिमाण के बाद आता है। (१) तीन केवली
- ६२ वर्ष (२) पांच श्रुतकेवली
- १०० ॥ (३) ११ दश पूर्वधारी .
- १८३ ॥ (४) पांच ग्यारह अंग के धारी (५) चार आचारांगधारी
- ११८ ॥
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कुल ६८३ वर्ष
१. कल्पसूत्र स्वपिरावली. २. जयपवला, भाग-१ प्रस्तावना, पृ. २३-३० हरिवंशपुराण.