________________
प्राकृत और संस्कृत, ७१
२४८ प्राकृत भाषा और आर्य भाषायें, ६६ पाश्चात्य विचारक, १४९ प्राकृत : साहित्य के क्षेत्र में, ७३ पाश्चात्य दर्शन में सृष्टि विचार, १५५ प्राकृत और छान्दस् भाषा, ६७ पाश्चात्य दर्शन में काल, १७० प्राकृत : जन भाषा का रूप, ६८ पाश्चात्य दर्शन में मोक्ष, ३२० प्राकृत जैन साहित्य, ७४
पादोपगमन, २८७ प्राकृत साहित्य का वर्गीकरण, ७८ पाणिनि, ६७, ७० प्राकृत कोशकला, ९९
पारिणामिक भाव, १४१ प्राकृत व्याकरण, ९८
पार्श्वनाथ, ६, १७, १८, ३७,४३ प्राणात्मकतावाद, १५०
पासज्ज,४३ प्रामाण्य विचार, १९१
पालि साहित्य, १५७ प्रायश्चित्त, ३०५
पावा. २०, २७ प्रायोपवेशन, २८७
पिशल, ७० प्रायोपगमन मरण, २८५, २८७ पुद्गल (अजीव) : स्वरूप और पर्याय, प्रारंभिक गुफायें, ३६०
१४५-१६५ प्रोषध प्रतिमा, २७८-९
पुद्गल और मन, १४९ प्लेटो, १४४
पुद्गल और आधुनिक विज्ञान, १५३ पतियानी मंदिर, ३६६
पुद्गल विभाजन (आठ), १५२ पदार्थ के तीन गुण, २२२
पुद्गल स्वभाव संख्या, १४७ परमार, ३२७
पुप्फिया, २४ परमार शैली, ३६७
पुरुषार्थ, १५६ परमात्मपद, ३१०
पुलकेशी, ३३५ परमाणुवाद, १५२
पुष्पमित्र, ३१ परम्परागत साहित्य, ७४
पुष्पदन्त-भूतबलि, १६, ३२, ९०, १०३ परार्थानुमान, २०९-१०
पूर्व (१४),७४ परिग्रहत्याग प्रतिमा, २८०-१ पूर्व भारत, ३४५, ३६३ परिणामवाद, १२८, १३५
पृथक्त्व वितर्क विचार, ३०८ परिणामी नित्यत्व, १२१
पैलेजोइक (पुरातन जीवयुग), ५ परोक्ष प्रमाण, २०५
पौराणिक-ऐतिहासिक काव्य, ९४ पर्याय, १२२, १२४
पौराणिक काव्य साहित्य, १०८ पर्यायार्थिक नय, १२५
पञ्चस्तूपान्वय, ४६, ३२६ परिग्रह परिमाणाणुव्रत, २७५ पञ्चनीवरण, ३९५ परीषह, ३०३
पंच महावत, २०, ६१ वंत (छह), १७१
पञ्चसमितियाँ, २९६ पश्चिम भारत, ३४६, ३६४ पंचेन्द्रियविजयता, २९७ पाटलिपुत्र वाचना, ७६
पंचास्तिकाय, १२९, १३३, १३५, पारमार्थिक प्रत्यक्ष, २०३
१६३, १६६, १६८, १५९, २३६ पालशैली, ३४५
फलिताचार्य, ३४ पालकाल, ३४५
बर्कले, १४५ पाश्चात्य दर्शन, १३०, १४, १५७, बन्ध, १४८