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बौद्ध संस्कृति में भी शिक्षक अथवा गुरू को आचार्य और उपाध्याय की संज्ञा दी गई है। शिक्षक उस नाविक की तरह है जो स्वयं नदी पार करने के साथ ही दूसरों को भी पार कर देता है। वह बहुश्रुत, संयमी, सांसारिक विषयों से दूर रहने वाला तथा उत्साही होता है। भ. बुद्ध का यह कथन कि "तथागत केवल आख्याता अथवा शिक्षक है। उसके द्वारा निर्दिष्ट मार्ग पर तुम्हें स्वयं ही चलना है" अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यहाँ यह स्पष्ट किया गया है कि शिक्षक सर्वप्रथम स्वयं उस विषय का अध्ययन और मनन करे जिसे वह दूसरे को देना चाहता है।
___ शिक्षण की इन प्रणालियों में जैन-बौद्ध साहित्य में प्रश्नोत्तर शैली, उपमा शैली और खण्डन-मण्डन शैली अधिक प्रचलित रही है। प्रश्नोत्तर शैली में भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध तथा उनके अनुयायी अपने प्रतिपक्षी विद्वानों से प्रश्न पर प्रश्न करते और उन्हीं के माध्यम से उत्तर निकाल लेते। भगवती सूत्र, कथावत्थु, मिलिन्दपञ्हो आदि ग्रन्थों में इस शैली के दर्शन होते है। अंगुत्तर निकाय में उत्तर देने की चार रीतियों का उल्लेख है
१. एकसंव्याकरणीय- प्रश्न का एक भाग व्याकरणीय होता है। २. विभज्ज व्याकरणीय- प्रश्न का विभाजन करके उत्तर दिया जाता है। ३. पटिपुच्छा व्याकरणीय- प्रश्न का उत्तर प्रतिप्रश्न करके दिया जाताहै। ४. ठापनीय- कुछ प्रश्न ऐसे भी होते है जिनका उत्तर छोड़ देना पड़ता है।
इन चारों प्रकारों का जानकार भिक्षु कुशल होता है । वह दुविजेय, गंभीर, अनाक्रमणीय, अर्थ-अनर्थ का जानकार, और पण्डित होता है।
एक सवचनं एक विभज्जवचनापरं । ततिय पटिपुच्छेय्य, चतुत्थं पन ठापये । यो च तेसं तत्थ तत्थ जानाति अनुधम्भतं । चतुपञ्हस्स कुसलो, आहु भिक्खु तथाविधं । दुरासदो दुप्पसहो गम्भीरो दुप्पधंसियो। अत्थो अत्थे अनत्थो च उभयस्स होति कोविदो।
१. महावग्ग, पृ. ५६-५७ २. खुदकनिकाय, भाग १, पृ. ३१५ ३. तुम्हे हि किच्चं आतप्पं बाक्वातारो तयागतो, वही, पृ. ३१५, प्रवचनसाए, ७९॥
भगवती बाराषना, ३००