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(२) कर्गलचित्र :
कागज पर चित्रित प्राचीनतम पाण्डुलिपि कल्पसूत्र-कालकाचार्य कथा है जिसका रचनाकाल १३४६ ई. माना जाता है। इसमें क्रमशः ३१ बोर १३ चित्र हैं। कालकाचार्य कथा की कुछ और भी सचित्र प्रतियां लगभग इसी समय की मिलती हैं। शांतिनाथचरित की १३९६ ई. की प्रति, जो एल. डी. इन्स्टीटयूट, अहमदाबाद में सुरक्षित है तथा कालकाचार्य कथा जो प्रिंस आफ वेल्स म्युजियम में रखी है, भी यहाँ उल्लेखनीय हैं। ये पांडुलिपियां १५वीं शताब्दी के प्रारंभ काल की हैं। इसी की और भी अनेक प्रतियाँ अनेक स्थानों पर भिन्न-भिन्न शैलियों में लिखी मिलती है। इन में सोने और चांदी की स्याहियों का प्रयोग किया गया है। इसे 'समृद्धि शैली' कहा गया है। इसका प्रचलन गुजरात और राजस्थान में अधिक रहा। कल्पसूत्र की भी इसी प्रकार की अनेक प्रतियां मिली है। इन पर पत्र-पुष्प और पशु पक्षियों के साथ नारी आकृतियों को उनकी क्षेत्रीय वेशभूषाओं में चित्रित किया गया है। आलंकारिक किनारी का चित्रण फारसी तेमूर चित्र शैली का प्रभाव है। कालीनों, वस्त्रों और वर्तनों का चित्रण भी इसी शैली के अन्तर्गत आता है। पाटन भंडार का सुपासनाह चरिय (१४२२ ई.) बडोदा, का कल्पसूत्र (१४६५ ई.) आदि प्रतियों में भी पश्चिमी चित्रण शैली का प्रयोग हुआ है। इनमें तीर्थंकरों की जीवन, घटनायें माता-स्वप्न, बाहुबली-युद्ध, तथा विविध नृत्य-मुद्रायें अंकित हैं। तत्वार्थसूत्र की १४६९ की पांडुलिपि तथा यशोधरचरित्र की प्रतियां भी इसी समृद्ध शैली की प्रतीक है। कई स्थानों पर उत्तराध्ययन की भी इसी प्रकार की प्रतियां मिली है। यह शैली पश्चिम भारत में १५ वीं शताब्दी के बीच तक चलती रही।
___ योगिनीपुरा, दिल्ली में सुरक्षित आदि पुराण (१४०४ ई.) तथा महापुराण की प्रतियां भी इसी समृद्ध शैली से जुड़ी हुई है। इनमें रेखीय अंकन का प्रयोग हुआ है। भविसयत्त कहा (१४३० ई.), पासणाह चरिउ (१४४२ ई.), जसपर चरिउ (१५४० ई.) आदि प्रतियों में उत्तर भारत की चित्र परम्परा को विकसित किया गया है। महाकवि रइधू की प्रतियां ग्वालियर और दिल्ली में अधिक उपलब्ध हुई हैं। इन प्रतियों में हल्की रंग योजना, मानव की विविध मुद्राओं, वेश भूषाओं तथा स्थापत्य की अनेक परम्परामों का अंकन किया गया है। आदिपुराण की भी अनेक सचित्र प्रतियाँ उपलब्ध हुई है। नागपुर जैन मंदिर की सुगंध दशमी कथा भी यहाँ उल्लेखनीय है जिसमें ६७ चित्र अंकित हैं। यह अठारहवीं शती की प्रति है। जैन सरस्वती भवन, बम्बई में सुरक्षित भक्तामर स्तोत्र की भी इसी प्रकार सचित प्रतियां मिलती है।