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अधिष्ठानों की बहुत उन्नति हुई। कलिंग ने अपने राज्य के तेरहवें वर्ष में इन पहाड़ियों पर जैन गुफायें, स्तूप, बिहार और मंदिरों का निर्माण कराया। हापी गुफा शिलालेख में यह सब विस्तार से उत्कीर्ण मिलता है। इन गुफाओं को बिहार के रूप में विकसित किया गया। इनमें कोठरियां और बरामदे हैं तथा कहीं-कहीं बरामदे के सामने समतल भूमि भी है । कोठरियों की छतें अधिक नीची है । ये गुफायें प्रायः दो मंजिलों की हैं । बिना स्तम्भ और बरामदे वाली गुफायें छोटी और अलंकृत हैं तथा स्तंभयुक्त बरामदेवाली गुफायें बड़ी और अलंकृत हैं। इनमें रानी गुफा का शिल्प अधिक मनोहारी है। शिल्पांकित तोरण और द्वारपाल भी अंकित हुए हैं।
जूनागढ (गिरिनार) में लगभग बीस शैलोत्कीर्ण गुफायें हैं जो बाबाप्यारा-मठ की गुफायें कहलाती हैं। ये तीन पंक्तियों में बनी हैं। इनमें मंगल कलश, स्वस्तिक, श्रीवत्स, भद्रासन, मीनयुगल आदि चिन्ह मिलते हैं। इसका काल लगभग ई.पू. द्वितीय शती है। यह धरसेनाचार्य की चन्द्रगुफा हो सकती है।' क्षत्रप कालीन ये गुफायें कुछ विशेषतायें लिये हुए हैं।
राजगृह के समीप सोनभण्डार नाम का एक जैन गुफा समूह है जो प्रथमद्वितीय शती का होना चाहिए। इसका विशेष सम्बन्ध दिगम्बर सम्प्रदाय से है। इसके कक्ष विशाल आयताकार है और द्वार स्तम्भ ढलुवाँ है । यहाँ प्राप्त लेख के अनुसार ये गुफायें वैरदेवमुनि ने जैन साधुओं के आवास की दृष्टि से बनवाई। प्रयाग के पास पभोसा की गुफायें भी शुंगकालीन हैं जो वहाँ के लेख के अनुसार अर्हों को भेंट की गई थीं।
दक्षिणापथ में प्रारम्भिक शताब्दियों में तमिलनाडु में प्राकृतिक जैन गुफाओं की संख्या अधिक है। यहां तमिल भाषा के प्राचीनतम अभिलेख तथा प्रस्तर-स्मारक मिले हैं । गुफाओं के भीतर शिलाओं को काटकर शय्यायें बनायी गयीं और तकिये भी उठा दिये गये। ऊपर प्रस्तर-खण्ड को लटका दिया गया है ताकि वर्षा का पानी बाहर निकल सके। ये ई. पू. द्वितीय शती की गुफायें है। इसी प्रकार मदुरै जिले में आनेमले, अरिट्टापट्टि, मांगुलम्, मुत्तुप्पट्टि (समणरमल), तिरप्परंकुरम्, परिच्चपुर, अजगरमल, करूंगालक्कुडि, कीजवलवु, तिरुवादवूर और नीलक्कोट्टै, रामनाथपुरम् जिले में पिल्लैयर्पत्ति, तिरुनेल्वेलि जिले में मरुकल्तल, तिरुच्चिरप्पल्लि जिले में तिरुच्चिरप्पल्लि, शितन्त्रवासक, नर्तमल, तेनिमलै, पुगलूर, कोयम्बतूर जिले में अरन्चलर उत्तर अर्काट जिले में ममन्दुर, सेदुरम्पत्तु, दक्षिण अर्काट में तिरुनाथरकुरु, सोल- बन्दिपुरम्
१. भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ. ३१०.