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________________ ३१७ होते हैं- सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्म सांपराय और यथाख्यात । १. सामायिक - हिंसादिक सावध योगों का सार्वकालिक अथवा नियत कालिक त्याग समायिक है। २. छेदोपस्थापना-प्रमादवश स्वीकृत निरवद्य क्रियाओं में दूषण लगने पर उसका सम्यक् प्रतीकार करना छेदोपस्थापना है। ३. परिहारविशुद्धि - इसमें प्राणिवध के परिहार के साथ ही साथ विशिष्ट ___शुद्धि होती है। यह चारित्र विशिष्ट साधु को ही प्राप्त होता है। ४. सूक्ष्मसांपराय- जो स्थूल व सूक्ष्म प्राणियों की हिंसा के परिहार में पूर्णतः अप्रमत्त हो, कर्मरूपी ईन्धन को ध्यानाग्नि में जला चुका हो, जिसके मात्र सूक्ष्म लोभ कषाय बच गया हो उसे सूक्ष्म सांपराय चारित्र की प्राप्ति होती है। ५. यथाख्यात - मोह के उपशम या क्षय के अनन्तर प्रगट होने वाला चारित्र्य यथाख्यात चारित्र्य कहलाता है। ये चारित्र के प्रकार आत्मा की विशुद्धि के प्रतीक हैं और उसके स्वस्वरूपात्मक स्थिति को प्राप्त करने के विकासात्मक परिणाम हैं। स्व-परविवेक रूप भेदविज्ञान उसका अवलम्बन है। इनमें से किसी एक चारित्र में प्रवृत्त व्यक्ति को 'चारित्रपण्डित' कहा जाता है।' मोक्ष: मोक्ष कातात्पर्य है-कर्मों का आत्यन्तिक क्षय । इस अवस्था में आत्मा कर्म-मलोंसे विमुक्त होकर आत्यन्तिक ज्ञान-दर्शन रूप अनुपम सुख का अनुभव करता है।' यह मोक्ष दो प्रकार का है - द्रव्यमोक्ष और भावमोक्ष। आत्मा का संपूर्ण कर्मों से थक हो जाना द्रव्यमोक्ष है। क्षायिक ज्ञान, दर्शन व यथाख्यात चारित्र नाम वाले जिन परिणामों से निरवशेष कर्म आत्मा से दूर किये जाते हैं उन परिणामों को भावमोक्ष कहते हैं। इसी अवस्था में व्यक्ति सर्वज्ञ बनता है। भावमोक्ष केवलज्ञान की उत्पत्ति, जीवन्मुक्त और अर्हन्त पद ये सब एकार्थक शब्द है। अष्ट कर्मों से विमुक्त हो जाने पर जीव जन्म, जरा, मरण आदि क्रियाओं से मुक्त १. तत्वार्यसूत्र, ९. १८ २. भगवती आराधना, विजयो; २५. ३. सर्वार्थ सिडि, १.१.
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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