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पाश्चात्यदर्शन और अनेकान्तवाद :
पाश्चात्य चिन्तकों ने भी इन दोनों नयों को किसी न किसी रूप में स्वीकार किया है । हिरेक्लिटस, पारमेनाइडीस, साक्रेटीज, प्लेटो, अरस्तु कांट, हेगल, विलियम जेम्स और ब्रेडले जैसे दार्शनिकों का चिन्तन स्याद्वाद के चिन्तन से मिलता-जुलता है । बेलीज से लेकर अरस्तु तक दार्शनिक क्षेत्र में मतभेदों को देखकर पीरो ने संजयवेलट्ठिपुत्त के समान संशयवाद और अनिश्चिततावाद को प्रतिपादित किया । सेक्लेटस, एम्पिरिकस और एने सिडिमस ने प्राचीन मतों का खण्डन कर यह स्थापित किया कि वस्तु में अनन्तगुण होते हैं जिन्हें एक व्यक्ति नहीं समझ सकता । साथ ही एक ही पदार्थ में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण होने से उनके विषय में एकमत भी नहीं हो पाता । अतः इन्द्रियप्रत्यक्ष को प्रमाण नहीं माना जा सकता । यह मत किसी सीमा तक अनेकान्तवाद से मिलता-जुलता है ।
प्रो. अलबर्ट आईन्स्टीन के सापेक्षवाद का भी यहाँ उल्लेख कर देना आवश्यक है । वीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में उन्होंने भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में अपना एक नया चिन्तन प्रस्तुत किया । उनके 'असीम सापेक्षता' पर ही उन्हें १९२१ में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया । उनके Theory of Relativity का ही हिन्दी अनुवाद सापेक्षवाद किया गया जो तत्वतः स्वीकृत हो गया । यह सापेक्षवाद स्याद्वाद से बिलकुल मिलता-जुलता है । इसलिए राधाकृष्णन् जैसे सर्वमान्य दार्शनिकों ने स्याद्वाद का भी अनुवाद Theory of Relativity करके सापेक्षवाद को स्वीकार किया । दोनों सिद्धान्तों में सापेक्षिक सत्य पर जोर दिया गया है और अनेक उदाहरणों के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि वस्तुयें अनन्तधर्मात्मक हैं जिन्हें एक साधारण व्यक्ति युगपत् नहीं जान सकता । अतः प्रत्येक दृष्टिकोण ऐकान्तिक सत्य को लिये हुए है। इसलिए आईन्सटीन का परीक्षावादी सिद्धान्त और स्याद्वाद की परीक्षा पद्धति लगभग समान है ।
स्याद्वाद गणितशास्त्र के Law of Combination ( संयोग नियम ) आधार पर अस्ति, नस्ति और अवक्तव्य के मूल भंगों को मिलाकर सप्तभंगियों को तैयार करता है । वस्तु तत्व को सही समझने के लिए यह एक सुलझा उपाय है । 'स्यात्' लाग्छन इसकी संभावित आशंकाओं को भी दूर कर देता है । उसके रहने से विधेयात्मकता के साथ निषेधात्मकता और निषेधात्मकता के साथ विधेयात्मकता तथा दोनों की स्थिति में अवक्तव्य दृष्टि स्वतः समाहित हो जाती है । प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र की दृष्टि से सप्तभंगी एक तार्किक आकार