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सोलह
तृतीय परिवर्त :
जैन साहित्य और आचार्य
भाषा और साहित्य (६५), प्राकृत भाषा और आर्यभाषाये (६६) (६६), प्राकृत और छान्दस् भाषा (६७), प्राकृत: जनभाषाका रूप (६८), प्राकृत का ऐतिहासिक विकासक्रम (७१), प्राकृत: और संस्कृत (७१), अपभ्रंश और आधुनिक भारतीय भाषाएँ (७२), प्राकृतः साहित्य के क्षेत्र में (७३), १. प्राकृत जैन साहित्य (७४), परम्परागत साहित्य (७४), अनुयोग साहित्य (७५), वाचनाएँ (७५), श्रुत की मौलिकता (७८), प्राकृत साहित्यका वर्गीकरण (७८), आगम साहित्य (७९), अंग साहित्य ( ८० ). उपांग साहित्य (८३), मूलसूत्र (८४), छेदसूत्र (८५), चूलिका सूत्र (८६), प्रकीर्णक (८६), आगमिक व्याख्या साहित्य (८७), निर्युक्ति साहित्य (८७), भाष्य साहित्य ( ८८, ) चूर्णि साहित्य (८९), टीका साहित्य (८९), कर्म साहित्य (९०), सिद्धान्त साहित्य (९२), बाचार साहित्य (९३), विधिविधान और भक्ति मूलक साहित्य (९४), पौराणिक और ऐतिहासिक काव्य साहित्य (९४), कथा साहित्य (९६), लाक्षणिक साहित्य (९८), २. संस्कृत जैन साहित्य (१००), चूर्णि और टीका साहित्य (१००) आचार साहित्य (१०७), भक्तिपरक साहित्य (१०७), पौराणिक और ऐतिहासिक काव्य साहित्य (१०८), कथा साहित्य (११०), ललित वाङ्मय (119), लाक्षणिक साहित्य (११२), ३. अपभ्रंश साहित्य (११३), ४. अन्य भारतीय भाषाओं का जैन साहित्य (११५), तमिल जैन साहित्य ( ११५ ), तेलगू जैन साहित्य ( ११५), कन्नड़ जैन साहित्य (११६), मराठी जैन साहित्य ( ११६), गुजराती जैन साहित्य (११६), हिन्दी जैन साहित्य ( ११७ ),
चतुर्थ परिवर्त :
६३-११८
११९-१७४
श्रम तत्वमीमांसा
दार्शनिक प्रश्न ( १२१), द्रव्य का स्वरूप ( १२१), परिणामी नित्यस्व (१२१), सदसत्कार्यवादित्व (१२२), द्रव्यः सामान्य बोर विशेष (१२५), उपादान और निर्मित (१२६), जैनेतर दर्शनों में द्रव्य का स्वरूप (१२७), बौद्ध दर्शन में द्रव्य का स्वरूप (१२७), वैदिक दर्शनों में द्रव्य का स्वरूप (१२८), पाश्चात्य दर्शनों में द्रव्य का स्वल्प (१३०), द्रव्यमेद (१०), जीव अथवा आस्मा (१३०), प्राचीनतम रूप (१३०), नात्मा का स्वस्थ (११२), जात्मा और कर्म (१३५), आत्मा का अस्तित्व