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हो सकते हों, न पूतिमाव-सड़न को प्राप्त हो सकते हों। उसमें से सौ सौ वर्ष के बाद एक एक बाला निकालने से वह पत्य जितने काल में भीण, भीरण, निर्मल, निष्ठित, निर्लेप, अपहत और विशुद्ध होगा उतने काल-को पल्योफ्म कहते हैं । ऐसे कोटाकोटि पल्योफ्मकाल को जब दस गुना किया जाता है तोएक सागरोपम होता है। इस सागरोपम के प्रमाण से चार कोटाकोटि-सरोक्न काल का एक सुषमसुषमा बारा, तीन कोटाकोटि सागरोपमकाल का एक सुषमा, दो कोटाकोटि सागरोपम काल का एक दुषमनुषमा, बयालीस हजार वर्ष कम एक कोटाकोटि सागरोपम काल का एक दुषमासुषमा, इकाकीसहकार वर्ष का दुःषमा, इक्कीस हजार वर्ष का दुःषमदुःषमा मारा होता है। इन छः आरों के समुदायकाल को अवसमिणी कहते हैं। फिर इसकीय इमार वर्ष का दुःषमा बयालीस हजार वर्ष कम एक कोटाकोटि सामरोमम का दुषमा-सुषमा, दो कोटाकोटि सागरोपम का सुषमा-दु:षमा, तीन कोठाकोटि साबारोपमा का सुषमा, और चार कोटाकोटि सागरोपम का सुषमा-सुषमा मारा होता है। इन छ: आरों के समुदाय को उत्सपिणी काल कहते है । दसकोटाकोटि सागरोपम काल की एक अवसर्पिणी होती है और बीस कोटाकोटि सापशेपम काल का अवसपिणी-उत्सर्पिणी कालचक्र होता है।'
काल का क्षेत्र ढाई द्वीप है। ढाई द्वीप में मनन्त जीव रहते है। मसर काल बर्तन करता है । उनमें जो बनन्तपरिणाम पर्यायें उत्पन होती हैं ये काल द्रव्य के निमित्त से होती हैं । अनन्त द्रव्यों पर वर्तन करने से काल की पर्याय संख्या अनन्त कही गई है। पाश्चात्य दर्शन में काल:
पाश्चात्य दाणिनिकों में भी कालवाद प्रचलित रहा है। न्यूटन, कार्ते, लाइवनीज आदि विद्वान इस संदर्भ में अन्तनिरीक्षणवादी (intuitionist) तमा यथार्थवादी (Realist) हैं। वर्कले, हयूम मिल मादि दार्शनिक काल की बाहयगत सत्ता को अस्वीकार करते हैं तथा उसे अमर्त क्विार मात्र (abstract Idea) मानते हैं। कान्ट ने काल को बुद्धिनिहित, बनुभव से पूर्व प्रत्यय (a priori form) माना है। हेमेल ने दयात्मक (Dialectic) दृष्टिकोण से उपर्युक्त मतों का समन्वित करने का प्रयत्न किया है। एलेक्जेन्डर, आइन्स्टीन, बाड मादि दार्शनिक दिक् और काल को अभिन्न मानते हैं । लोकका स्वरूप :
लोक का तात्पर्य है विश्व । यह समूचा विश्व षड्तव्यों का समुन्नय १. भगवतीसूत्र, ६.७; नवपदार्थ, पृ. ९३-९४, 2. मोऽनन्तसमय, समापसून, पृ. ४०; मापदार्थ, पृ. ९४