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से अपभ्रंश और गुजराती में पार्थक्य दिखाई देने लगा। गुजरात प्रारम्भ से ही जैन धर्म और साहित्य-संस्कृति का केन्द्र रहा है। हेमचन्द आदि अनेक जैन बाचार्य गुजरात में हुए जिन्होंने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश में साहित्यसृजन किया । लगभग १२ वीं शती में जैन कवियों ने रासो, फागु, बारहमासा, कक्को, विवाहलु, चच्चरी, आख्यान आदि विषाओं को समृद्ध करना प्रारम्भ किया। इसके पूर्व उद्योतनसूरि (७७९ ई.) की कुवलयमाला तथा धनपाल की मविस्सयत्त कहा प्राकृत तथा अपभ्रंश के प्रसिद्ध काव्य है जो गुजराती के लिए उपजीव्य कहे जा सकते हैं। शालिभद्रसूरि (११८५ ई.) का भरतेश्वर बाहुबलिरास प्रथम प्राप्य गुजराती कृति है। उसके बाद धम्मु का जम्बूरास, विनयप्रभ का गौतमरास, पपसूथी का सिरियूलिभद्द, राजशेखरसूरि का नेमिनाथ फागु, प्राचीन गुजराती साहित्य की श्रेष्ठ कृतियां हैं। इस काल में अषिकांश लेखक जैन हुए हैं।
भक्तिकाल में १५ वीं शती में भी जैन ग्रन्थकार हुए हैं। शालिभद्ररास, गौतमपृच्छा, जम्बूस्वामी विवाहलो, जावड भावडरास, सुदर्शन श्रेष्ठिरास आदि अन्य इसी शती के हैं। लावण्यसमय १६ वीं शती के प्रमुख साहित्यकार थे। विमलप्रवन्ध भी इसी समय की रचना है। रास, चरित्र, विवाहलो, पवाड़ो आदि अन्य साहित्य भी इसी समय लिखा गया। १७ वीं शती के जैन साहित्य में नेमि. विजय का शीलवतीरास, समय सुंदर का नलदमयन्तीरास, आनंदघन की आनंद चौबीसी और आनंदघन बहोत्तरी प्रमुख है। इसी समय लोकवार्ता साहित्य तवा रास और प्रबन्ध भी लिखे गये। १८-१९ वीं शती में भी साधुओं ने इसी प्रकार का साहित्य लिखा। उदयरत्न, नेमिविजय, देवचन्द, भावप्रभसूरि, जिनविजय, गंगविजय, हंसरत्न, ज्ञानसागर, भानुविजय आदि जनसाहित्यकार उल्लेखनीय हैं । इन सभी ने गुजरातीभाषा में विविध साहित्य लिखा है । हिन्दी बन साहित्य :
हिन्दी साहित्य का तो प्रारम्भ ही जैन साहित्यकारों से हुआ है। उसका बादिकाल कब से माना जाय यह विवाद का विषय अवश्य रहा है पर स्वयंभू और पुष्पवंत को नहीं भुलाया जा सकता जिनके साहित्य में अपभ्रंश से हटकर हिन्दी की नयी प्रवृतियाँ दिखाई देती हैं। मुनिरामसिंह, महयंदिण मुनि, मानंद तिलक, देवसेन, नयनंदि, हेमचन्द्र, धनपाल, रामचन्द, हरिभद्रसूरि, आमभट्ट आदि जैन कवि उल्लेखनीय हैं। करकण्डचरिउ, सुदर्शनचरिउ. नेमिनाहचरिउ आदि अपभ्रंश साहित्य भी इसी काल का है। रासो, फागु, बेलि, प्रबन्ध आदि विषायें भी यहां समन हुई हैं । शालिभद्रसूरि (सन् १९८४) का बाहुबलिरास, जिनदत्तसूरि के चर्चरी, कालस्वरूप फुलकम् और उपदेश