________________
सामग्रीसे भरा हुमा है । करलक्षण (६१ गा.) भी किसी अज्ञात कवि की रखना है जिसमें लक्षण, रेखाबों आदि का वर्णन है।
वास्तु शिल्प शास्त्र के रूप में ठक्कर फेरु का वास्तुसार (२८० मा.) प्रतिष्ठित ग्रन्थ है जिसमें भूमिपरीक्षा, भूमिशोषन बादि पर विवेचन किया गया है। इसी कवि की एक अन्य कृति रत्न परीक्षा(१३२ गा.) है जिसमें पद्मराग, मुक्ता, विद्रुम बादि १६ प्रकार के रत्नों का उत्पत्ति-स्थान, माकार, वर्ण, मुण, दोष मादि पर विचार किया गया है । उन्हीं की द्रव्यपरीक्षा (१४८ बा.) में सिक्कों के मूल्य, तौल, नाम आदि पर, धातूपत्ति (५७ गा.) में पीतल, तांबा बादि धातुओं पर, तथा भूगर्मप्रकाश में तान, स्वर्ण आदि द्रव्य वाली पृथ्वी की विशेषताओं पर विशद प्रकाश डाला गया है। ये सभी अन्य वि. सं. १३७२-७५ के बीच लिखे गये हैं।
इस प्रकार प्राकृत भाषा और साहित्य के सर्वेक्षण से यह स्पष्ट हो जाता है कि जैनाचार्यों ने उसकी हर विद्या को समृद्ध किया है। प्रस्तुत अध्याय में स्थानाभाव के कारण सभी का उल्लेख करना तो संभव नहीं हो सका। पर इतना तो अवश्य कहा जा सकता है कि प्राकृत जन साहित्य लगभग पच्चीस सौ वर्षों से साहित्य के हर क्षेत्र को अपने योगदान से हरा भरा करतां बा रहा है। प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति का हर प्राङ्गम प्राकृत साहित्य का ऋणी है। उसने लोकमाषा और लोकजीवन को बीकारकर उनकी समस्याजों के समाधान की दिशा में बाध्यास्मिक चेतना को जागृत किया। इतना ही नहीं, माधुनिक साहित्य के लिए भी वह उपजीव्य बना हुवा है। प्रेमास्यानक काव्यों के विकास में प्राकृत जैन कया साहित्य को भुलाया नहीं जा सकता ।संस्कृत पम्पू और चरित काव्य के प्रेरक प्राकृत अन्य ही हैं। काव्य शास्त्रीय सिदान्तों का सरस प्रतिपादन भी यहां हुवा है । दर्शन और सिदान्त से लेकर भाषाविज्ञान, व्याकरण और इतिहास तक सब कुछ प्राकृत जैन साहित्य में निवर है । उसके समूचे योगदान का मूल्यांकन अभी शेष है।
२. संस्कृत साहित्य जैनाचार्यों ने प्राकृत भाषा के समान संस्कृत भाषा को भी अपनी बनिव्यक्ति का साधन बनाया और इस क्षेत्र को भी अपने पुनीत योगदान से बलकृत किया । यद्यपि संस्कृत भाषा में सर्वप्रथम रचना करने वाले अनाचार्यों में उमास्वाति अथवा उमास्वामी का नाम बड़ी श्रद्धा के साथ स्मरण किया जाता है पर हम यहां समूचे संकत जैन साहित्य को विविध विधानों में वर्गीकृतकर उसको संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करना अधिक उपयोगी समान रहे हैं। साथ ही