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नही करना चाहिये और न अपने प्रयत्नो मे शिथिलता लानी चाहिये । आधुनिकता के प्रवाह मे धर्म के जो सुदृढ आधार स्तम्भ हैं, वे विचलित हो जायें, यह शुभ लक्षण नही है। आधुनिकता या विज्ञान कोई चरम सत्य नही है । वह तो सत्य को प्राप्त करने की, उसे खोज निकालने की एक प्रत्यक्ष प्रयोग भूमि और परीक्षण प्रक्रिया मात्र है। इस प्रक्रिया के द्वारा हमे अपनी दृष्टि को तटस्थ व पारदर्शी बनाने के लिये सतत सावधान और तत्पर रहना चाहिए ।
प्रस्तुत पुस्तक मे उपर्युक्त विचार-क्रम में समय-समय पर लिखे गये मेरे १२ निबन्ध सकलित हैं । इनमे से कुछ निवन्ध भगवान् महावीर के २५००वे परिनिर्वाण महोत्सव पर उदयपुर विश्वविद्यालय, सागर विश्वविद्यालय, नागपुर विश्वविद्यालय व अन्य स्थानो पर आयोजित सगोष्ठियो मे पठित है। समय-समय पर लिखित होने के कारण इन निवन्धो मे कही-कही विचारो की पुनरावृत्ति होना स्वाभाविक है। आशा है, पाठक मेरे विचारो को उदारतापूर्वक ग्रहण करेंगे।
सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर के पदाधिकारियो के प्रति मैं अपना आभार व्यक्त करता हूँ कि उन्होने मेरी इस पुस्तक को प्रकाशित कर मेरे विचारो को पाठकों तक पहुंचाने मे सहयोग प्रदान किया ।
-नरेन्द्र भानावत
सी-२३५ ए, तिलकनगर जयपुर-३०२ ००४ विजयादशमी, १९८४
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