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४ समुच्छिन्न क्रिया अनिवृत्ति - जब शरीर की श्वास-प्रश्वास क्रिया भी बन्द हो जाती है और प्रात्म- प्रदेश सर्वथा निष्कम्प हो जाते है ।' इसमे स्थूल या सूक्ष्म किसी प्रकार की मानसिक, वाचिक, कायिक क्रिया नही रहती । यही मुक्त दशा की स्थिति है ।
शुक्ल ध्पान के प्रारम्भिक दो ध्यानो मे श्रुत ज्ञान का अवलम्व लेना होता है जबकि अन्तिम दो मे श्रुत ज्ञान का आलम्बन भी नही रहता । अतः ये दोनो ध्यान अनालम्बन कहलाते है ।
बौद्ध धर्म मे ध्यान पर सर्वाधिक जोर दिया गया है । वहाँ ध्यान (झान) का एक अर्थ चित्तवृत्तियो को जलाना भी किया है । यहाँ ध्यान के दो मुख्य प्रकार माने गये हैं
१ आरभण उपनिज्झान -- जिसमे चित्त के विषयभूत वस्तु (आलम्बन) पर चिन्तन किया जाता है ।
२ लक्खण उपनिज्झान - जिसमे ध्येय वस्तु के लक्षणो पर चिन्तन किया जाता है ।
ध्यान-तत्त्व का प्रसार
भगवान् महावीर और बुद्ध दोनो बडे ध्यान-योगी थे । ध्यानावस्था मे ही दोनो मुक्त हुए । महावीर की ध्यान- परम्परा मध्य युग मे आकर मन्द पड गई । इसके कई सामाजिक और प्राकृतिक कारण रहे हैं । जैन श्रमणो के नगर सम्पर्क ने भी उसमे बाधा डाली ।' पर बुद्ध की ध्यानपरम्परा ने ध्यान-सम्प्रदाय का एक स्वतन्त्र रूप ही धारण कर लिया और चीन-जापान मे उसका व्यापक प्रचार हुआ। वह परम्परा आज भी वहाँ जीवित है |
१ पर वर्तमान मे जैन श्राचार्यों, मुनियो व साधको द्वारा जैन ध्यान- परम्परा को फिर से पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है। इस दिशा मे विविध प्रयोग हो रहे है, यथा- प्रेक्षा ध्यान, समीक्षण ध्यान, अनुप्रेक्षा ध्यान आदि ।
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२ बुद्ध की ध्यान-परम्परा, ब्रह्मा, लका, मलय प्रायद्वीप, थाईलैण्ड श्रादि देशो मे भी गई, जो वहाँ विविध रूपो मे आज भी विद्यमान है । उन्ही मे से एक विधि 'वियश्यना' ध्यान नाम से प्रसिद्ध है । भारत मे श्री सत्यनारायण गोयनका द्वारा इसका पुनर्जागरण गत कुछ वर्षों मे किया गया है जिसके तीन मुख्य केन्द्र हैं - इगतपुरी (महाराष्ट्र), हैदरावाद और जयपुर ।
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