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ध्यान तत्त्व का प्रसार
आज का युग विज्ञान और तकनीकी प्रगति का युग है, गतिशीलता श्रीर जटिलता का युग है, प्रत यह प्रश्न सहज उठ सकता है कि ऐसे द्रुतजीवी युग मे ध्यान-साधना की क्या सार्थकता और उपयोगिता हो सकती है । ध्यान का बोध हमे कही प्रगति की दौड मे रोक तो नही लेगा, हमारी क्रियाशीलता को कुठित तो नही कर देगा, हमारे सस्कारो को जड और विचारो को स्थितिशील तो नही बना देगा ? ये खतरे ऊपर से ठीक लग सकते हैं पर वस्तुत ये सतही हैं और ध्यान-साधना से इनका कोई सीधा सम्वन्ध नही है । वस्तुतः ध्यान साधना निष्क्रियता या जडता का वोध नही है । यह समता, क्षमता और अखण्ड शक्ति व शांति का विधायक तत्त्व है |
एक समय था, जब मुमुक्षुजनो के लिए ध्यान का लक्ष्य निर्वाणप्राप्ति था । वे मुक्ति के लिए ध्यान-साधना मे तल्लीन रहते थे । आध्यात्मिक दृष्टि से यह लक्ष्य अब भी वना हुआ है । पर वैज्ञानिक प्रगति और मानसिक बोध के जटिल विकास ने ध्यान-साधना की सामाजिक और व्यावहारिक उपयोगिता भी स्पष्ट प्रकट कर दी है। यही कारण है कि ग्राज विदेश मे ध्यान भौतिक वैभव से सम्पन्न लोगो का आकर्षण केन्द्र बनता चला जा रहा है ।
ध्यान और चेतना
ध्यान का सम्बन्ध चेतना के क्षेत्र से है । मनोवैज्ञानिको ने चेतना मुख्यत. तीन प्रकार बतलाये है
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(१) जानना अर्थात् ज्ञान (Cognition) ।
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