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न लिखे, झूठे समाचार और विज्ञापन प्रकाशित न करावे और न भूठे झिाव आदि रखे । अस्तेय अत की परिपालना का आजीविका की शुद्धता की दृष्टि से विशेष महत्त्व है। आज चोरी के साधन स्थूल से सूक्ष्म वनते जा रहे है। सेंध लगाने, डाका डालन, ठगने और जेव काटने वाले ही चोर नहीं है बल्कि खाद्य वस्तुप्रो मे मिलावट करने वाले, एक वस्तु वताकर दूसरी लेने-देने वाले, कम तोलने व कम नापने वाले, चोरो द्वारा ली हुई वस्तु खरीदने वाले, चोरो को चोरी करने की प्रेरणा देने वाले, झूठा जमाखर्च करने वाले, अधिक सूद पर रुपया देने वाले भी चोर हैं। इन सूक्ष्म तरीको की चौर्यवृत्ति के कारण आज अन्याय और अत्याचार का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक हो गया है। सामान्यजन शोपण के चक्र के नीचे पिसता जा रहा है । अर्थ व्यवस्था के असतुलन से उत्पन्न अन्याय और अत्याचार को रोकने के लिये भगवान महावीर ने अर्जन के विसर्जन और शद्ध साधनो पर जो बल दिया है, उसकी आज के युग मे विशेप महत्ता है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि वर्तमान युग युद्ध, हिंसा, अभाव, विघटन, अन्याय और अत्याचार जैसी जटिल समस्याओं से ग्रस्त है। आज व्यक्ति तनावो में जी रहा है। आत्मघात और आत्महत्याओ के आकडे दिल दहलाने वाले हैं। इन समस्याओ से बचाव तभी हो सकता है जवकि व्यक्ति का दृष्टिकोण आत्मोन्मुखी बने । तभी उसमे प्रात्मविश्वास, स्थिरता, वर्य, प्रेम, सहानुभूति, जैसे सद्भावो का विकास सम्भव है।
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