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जेन-दशन' ।
] इनमें से पांच महाव्रत और पांच समिमियों का वर्णन तो पहले आ चुका है । शेषका स्वरूप इस प्रकार है:__इन्द्रियों का दमन-इन्द्रियां पांच हैं । स्पर्शन, रसना, घ्राण चक्षु और श्रोत्र । इनके विषय सत्ताईस हैं। स्पर्शन इन्द्रिय का विषय स्पर्श है । वह रूखा, चिकना, हलका, भारी नरम, कठोर, शीत, उष्ण के भेद से आठ प्रकार का है । रसना का विषय रस है । वह खट्टा, मोठा, कडवा, कषायला और चरपरा इनके भेद से पाँच प्रकार का है । घ्राण इन्द्रिय का विषय सुगंध और दुर्गंध है। चक्षु इन्द्रियका विषय लाल, पीला, काला, सफेद और हरा है और श्रोत्र का विषय शब्द है जो सात प्रकार है:-षड्ग, ऋषभ, गांधार, मध्यम धैवत, पंचम और निषाद ।
इन सब विषयों को त्याग कर इन्द्रियों को अपने वश में रखना इन्द्रियों का दमन करना है । मुनिराज सदा काल कछुए के समान अपनी इन्द्रियों को समस्त विषयों से समेट कार अपने वश में रखते हैं।
आवश्यक-जो अवश्य किये जाय उनको आवश्यक कहते हैं। आवश्यक छह हैं । समता, स्तुति, वंदना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और व्युत्सर्ग।
समता: जीना, मरना, लाभ, अलाभ, संयोग,. वियोग, ..बंधु, शत्र सुख दुःख आदि सब में समान,परिणाम रखना, किसी में न