________________
[७२
जैन-दर्शन । __अवमोदर्य-श्रवम शब्दका अर्थ कम है। आहारकी जितनी . मात्रा है या पेट के लिये जितना श्राहार चाहिये उससे कम याहार लेना अवमोदर्य है । कम आहार लेने से संयमकी वृद्धि होती है अनेक दोष शांत होते हैं, प्रमाद जन्य दोप नष्ट हो जाते हैं, संतोप गुण की वृद्धि होती है और सुख पूर्वक स्वाध्याय होता है?! कम आहार लेने से निर्मल ध्यान, तप या स्वाध्याय होता है, तथा इसी., . लिये अधिक कर्मों की निर्जरा होती है।
वृत्ति-परिसंख्यान-मुनि लोग जव अहार के लिये गमन करते हैं तब कुछ नियम लेकर गमन करते हैं । यथा-अाज, पहले. घरी. में आहार मिलेगा तो लेंगे नहीं तो नहीं । आज, चार छह घरतका आहार मिलेगा तो लेंगे नहीं तो नहीं । आज, पहली गली में आहार मिलेगा तो लेंगे अन्यथा नहीं । आज पडगाहन करने वाला पुरुप ही होगा या दंपतो होंगे या कलश लेकर खडे होंगे तो श्रीहार लेंगे नहीं तो नहीं। ऐसे अटपटे नियमों को वृत्ति-परिसंख्यान कहते हैं। वृत्ति का अर्थ चर्या है और परिसंख्यान का अर्थगणना या नियम है। चर्या के लिये कोई भी नियम कर लेना वृत्ति-परिसंख्यान है। इस तपश्चरण के करने से आशा का सर्वथा त्यागाहोजाता
और तपश्चरण, की वृद्धि होती है। इसीलिए इसके द्वारा विशेषता कर्मो को निर्जरा होती है।
रसपरित्याग-रस'छह हैं-घी, दही, दूध, गुर्ड, तेल और' नमक। इन छहों रसों में से किसी एक दो आदि रसों का त्याग कर देना या समस्त रसों का त्याग करदेना रसंपरित्याग तप' है।