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जेन-दर्शन • और सायंकाल तीनों समय सामायिक करते हैं । इस सामायिकका प्रत्येक ससय का काल कम से कम दो घडी और अधिक से अधिक छह घडी है। इस प्रकार प्रत्येक साधु की छह घड़ी या बारह घड़ी अथवा अठारह घडी प्रतिदिन सामायिक में निकल जाती है। इसमें समस्त पापोंका त्याग हो जाता है; इसलिये इतने ' समय तक अशुभ कर्मोंका आस्रव रुक जाता है।
छेदोपस्थापना-किसी मुनिके प्रमाद के निमित्त से यदि कोई दोष लग जाय तो उसको दूर करने के लिये जो क्रिया की जाती है, प्रायश्चित किया जाता है. या उपवास आदि किया जाता है उसको छेडोपस्थापना कहते हैं । अथवा हिंसा आदि पाप रूप कर्मों को विकल्प रूप से त्याग करना छेदापस्थापना है । मुनियों के जितना त्याग होता है वह तो होता ही है किन्तु उससे अधिक विकल्प रूप से त्याग करना छेदोपस्थापना है । इसीलिये इसमें अधिक संवर होता है।
परिहारविशुद्धि-परिहार शब्दका अर्थ त्याग है। हिंसा का सर्वथा त्याग हो जाना परिहार है तथा उससे आत्मा में जो विशुद्धि होती है उसको परिहार. विशुद्धि चारित्र कहते हैं ! यह .. परिहार विशुद्धि चारित्र ऐसे मुनियों के होता है जिनको आयु. कम लेकम तीस वर्ष की हो तथा जो चार, पांच, छह, सात, आठ या नौ वर्प तक तीर्थकर परम देवके चरण कमलों की सेवा में रहे हों जो ग्यारह अंग नौ पूर्व के ज्ञाता हो; जो जीवों के उत्पन्न होने के स्थान, जंतु रहित स्थान, देश, द्रव्य आदि के स्वभाव के...जानकार