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जैन-दर्शन स्थान होता है। इस प्रकार असंख्यात अनुभागाध्यवसाय स्थान हों। तब एक कपायाध्यवसाय स्थान होता है। फिर असंख्यात
घन्य योगस्थान से एक जघन्य अनुभागाध्यवसाय स्थान हो फिर असंख्यात जघन्य योग थान से दूसरा अनुभागाध्यवसाय स्थान हो । इस प्रकार असंख्यात अनुभागाध्यवसाव स्थान हों तब एक कपाय स्थान होता है । इसी प्रकार अनुक्रम से असंख्यात जघन्य कपाय स्थान हो तब एक जघन्य स्थिति स्थान होता है । फिर एक समय अधिक स्थिति के लिये वही क्रम चलता है । फिर दो समय के लिये वही क्रम चलता है । इस प्रकार उस कमे की एक एक समय अधिक करके उत्कृष्ट स्थिति पूर्ण हो । फिर जघन्य स्थिति से लेकर उत्कृष्ट स्थिति तक अनुक्रम से समस्त कर्मों की स्थिति पूर्ण हो तब एक भाव परिवत्तेन होता है। द्रव्य परिवर्तन से क्षेत्र परिवर्तन का काल अनंत गुणा है, उससे काल परिवर्तन का काल अनंत गुणा है उससे भव परिवन का काल अनंतत गुणा है
और उससे भाव परिवर्तन का काल अनंत गुणा है । ये पांचों परिवर्तन पूर्ण होने पर एक परिवर्तन गिना जाता है । संसारी जीवों ने ऐसे अनंत परिपत्तेन पूर्ण किये हैं। __ इन पांचों परिवर्तनों के स्वरूपको चितवन करना संसारानुप्रेक्षा है। इसका चितवन करने से संसार से वैराग्य उत्पन्न होता है
और मोक्षमार्ग में अनुराग होता है। इसीलिये मुनिराज सदा इसका चितवन करते हैं।