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________________ ( आ ) नवीन ढंग से की अनुभूत करके धमला है। इस वर्तमान धर्म के अहिंसा और अपरिग्रह के मूल सिद्धांत :ही सर्वोदय की निर्मल किरणों को विश्व में प्रकाशित कर जनता को वास्तविक सुख और शांति प्रदान कर सकते हैं। अतः जैनधर्म से परिचय कराने वाली तथा जनता को सम्यक् मार्ग में अनुगमन करानेवाली ऐसी पुस्तकों की आज अत्यन्त आवश्यकता है। इस वर्तमान युगीने आवश्यकता को अनुभत करके धर्मरत्नजी ने भी यह पुस्तक नवीन ढंग से अत्यंत सरल भाषा में लिखी है जिससे कि सर्वसाधारण जनता इससे लाभ उठा सके। ... :: प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन एवं प्रूफ संशोधनादि के कार्य में श्री माननीय विद्वान् पं० इंद्रलालजी शास्त्री विद्यालंकार संपाद के 'अहिंसा' ने वहुत श्रम प्रदान किया है। आपकी इस अनुग्रहपूर्ण कृति का ग्रंथमाला समिति समादर करती हैं। . ... पुस्तक को मुद्रित कर 'इसे सर्वांग सुन्दर बनाने में श्री भंवरलालजी न्यायतीर्थ मालिक:-श्री वीर प्रेस, जयपुर ने भी काफी परिश्रम किया है। अतः वे भी धन्यवाद के पात्र हैं। मैं आशा करता हूँ कि इस पुस्तक का धर्मशील जनता में समुचित आदर होगा। ::.:.:.. . "नांदगांव (नासिक) विनीत श्री महावीर निर्वाण दिवस तेजपाल काला जैन श्री'वीर नि० संवत् } | ऑ० मंत्री १०८ मुनि मल्लिसागर . .... २४८० .. ::, दि० जैन ग्रन्थमाला:
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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