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जैन-दशन की चार हाथ भूमि देखकर गमन करते हैं। यदि सामने कोई जीव आजाता है तो उससे व वकर निकलते हैं। इस प्रकार गमन करते समय भी किसी जीवका घात नहीं होता । इसीको ईर्या समिति कहते हैं । इससे भी अंहिंसा महात्रतका पूर्ण रूप से पालन होता है। .
भाषासमिति-जिस समय मुनि ववन गुप्ति का पालन नहीं करते, सदुपदेश देते हैं या तत्त्व चर्चा करते हैं उस समय भी वे जीवोंका हित करने वाले और परिमित वचन बोलते हैं। बिना
आवश्यकता के मुनिराज कभी नहीं बोलते। यदि बोलते हैं तो जीवों का हित करने वाले वचन हो कहते हैं, मोक्ष मार्ग को चर्वा करते हैं अथवा मोक्ष मार्गका ही उपदेश देते हैं। इसके सिवाय वे मौन धारण करते हैं। इस प्रकार हित मित रूप वचन कहने को भाषा समिति कहते हैं।
एषणासमिति-मुनि लोग भिक्षा भोजन करते हैं। भिक्षा भो किसी से मांगते नहीं किंतु देव वंदना आदि से निवृत्त होकर भोजन के समय चर्या के लिये पीछी कमंडलु लेकर तथा मौन धारण कर अपने स्थान से निकलते हैं और जहां भव्य गृहस्थों के घर होते हैं उधर गमन करते हैं । उस समय उन मुनि महाराजको प्रतिग्रह करने के लिये श्रावक जन नहा धोकर, धोती डुपट्टा पहन कर अपने अपने द्वार पर खड़े रहते हैं । गमन करते हुए वे मुनि जब अपने सामने जाते हैं तब वे श्रावक उनको नमस्कार कर