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जैन दर्शन
४३] स्थानों में समस्त प्रकार के सूक्ष्मास्थूल जीवों का स्वरूप जान लेना अत्यावश्यक है। क्योंकि जीवों का स्वरूप जाने बिना जीवों की रक्षा ही कैसे हो सकती है. ? इस..प्रकार समस्त जीवों की हिंसा का. सर्वथा त्याग कर देना अहिंसा महाव्रत है।
सत्यमहाव्रत-मन वचन'काय और कृत कारित अनुमोदना से सब प्रकार के असत्य वचनों का त्याग कर देना सत्य महावत है। सत्य महाव्रती कठोर निंद्य, अप्रिय, गर्हितं आदि वचन कभी नहीं कहता है। वह सदा जीवों के हित करने वाले परिमितं वचन कहता है।
अचौर्यमहाव्रतः-मन वचनकाय और कृत कारित अनुमोदना से समस्त प्रकार की चोरी का त्याग कर देना और तृण; मिट्टी आदि भी बिना दिये नहीं लेना अचौर्य महावत है।
ब्रह्मचर्यमहानत-मन वचन काया और कृतःकारित अनुमोदना से समस्त. स्त्रियों को माता, बहिन, पुत्री आदिके समान मानकरः: समस्त प्रकार के अब्रह्मका त्याग कर देना पूर्णब्रह्मचर्यका पालनः . करना, ब्रह्मचर्य महावत है।
परिग्रह त्याग महाव्रत-चौदह प्रकार के अंतरंग परिग्रह और दश प्रकार के वाय परिग्रहों को मन वचन'काय और कृत कारित अनुमोदना से सर्वथा त्याग कर देना परिग्रह त्याग महावत है।
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