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जन-दर्शन अशम सन्यन्ष्टी और ज्ञायोपशनिक सन्याट्री दोनों ही ज्ञायिक सन्यादर्शन प्राप्त कर मोन जाते हैं।
जिसके द्वारा पनार्थ जाने जाते हैं अथवा जो पदार्थों को जानता है अयश पदायाँका जो जानना है उसको भान कहते हैं। यह ज्ञान भालाका निज स्वभाव है और इसीलिये शुद्ध अात्मा उत्पन्न हुआ ज्ञान सन्यान्नान कहलाता है। तथा वही पक्षों के यथार्थ वपन जानता है परंतु जिस प्रकार टिक पारण सफेद होने पर भी उसके पीछे जा का लाल फूज रख दिया जाय ते वह सफल पाकाण भी लाल दिलाई पहना है, उसी प्रकार निध्यात्र के संसर्ग से वह जान भी मिथ्या ज्ञान हो जाता है। जानका जन जानना है परंतु उसको सन्या या निथ्या कर देना सन्ददर्शन या नियादर्शन का काम है। इसका भी कारण यह है कि इस बीवकी जैसी अक्षा होती है वैसा ही ज्ञान हो जाता है। यदि वह श्रद्धा सम्यक है तो उसका नाम भी सन्या है और चाद प्रद्धा मिथ्या है तो उसका ज्ञान भो निथ्या है । जिस रस्ती में सर्प को भद्धा हो जाती है उस रम्ती का ज्ञान सर्पल्प हो परिणत हो जाता है । इसी प्रकार आत्मा के यथार्थ वहा के प्रधान के बिना जितना भी ज्ञान है वह सब मिथ्या ज्ञान कहलाता है। फिर चाहे वह ज्ञान जितना हो दरले कमों न हो?
वर्तमान समय में जितना भी विज्ञान है या भौतिक पज्ञोंका ज्ञान है यह तब आत्मा के पधार्य त्वरूप के शान से रहित है,