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जैन- दशन
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स्नान से आत्मा की पवित्रता मानते हैं, पर्वत से गिरकर मरजाने में मुक्ति मानते हैं या अग्नि में जलकर मरजाने को मुक्ति मानते हैं वह सव लोक मूढ़ता है । क्योंकि इनमें आत्मा का कल्याण करने । वाले कोई गुण नहीं हैं । अतएव इनकी भक्ति पूजा करना सब लोकमूढता है । सम्यग्दृष्टी पुरुष आत्मगुणों की पूजा करता है और
वह उनके गुण अपने आत्मा में प्राप्त करने के लिये करता है । इसलिये वह ऐसी लोक मूढताका सर्वथा त्याग करदेता है । यह सम्यग्दर्शन का उन्नीसवां गुण है ।
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आगे वह अनायतनों के त्याग को कहते हैं । आयतन शब्दका अर्थ स्थान है । जो धर्म साधन के स्थान होते हैं उनको धर्मायतन कहते हैं तथा जो धर्म के आयतन न हों उनको अनायतन कहते हैं । ऐसे अनायतन छह ' है ।
भगवान जिनेन्द्र देवको देव कहते हैं तथा वीतराग सर्वज्ञ ऐसे श्री जिनेन्द्र देवका निरूपण किया हुआ धर्म-धर्म कहलाता है और वीतराग दिगम्बर अवस्था को धारण करने वाले मुनि गुरु कहलाते हैं। ये तीनों ही धर्म के आयतन हैं, धर्म के साधन हैं । जिनेन्द्र देव और दिगम्बर मुनियों की पूजा भक्ति करने से उनके गुणों में अनुराग बढ़ता है और धर्मका पालन करने से आत्माका कल्याण होता है । इसलिये ये तीनों ही धर्म के स्थान या धर्मायतन हैं । इसी प्रकार जो जीव इन तीनों को मानते हैं; इन्हीं की पूजा भक्ति करते हैं वे भी धर्म के स्थान या धर्मायतन कहलाते हैं। क्योंकि वे देव धर्म गुरु की पूजा भक्ति कर स्वयं अपने आत्माका कल्याण