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जैन-दर्शन धार्मिक ग्रंथों की शिक्षा के लिए विद्यालय खुलवा कर धार्मिक विद्वान तैयार करना, धार्मिक उपदेशक तैयार करना आदि सब इस प्रभावना अंग के साधन हैं।
इस प्रकार सम्यग्दर्शन के आठ अंग हैं। ये आठों ही अंग जब पूर्ण रूप से होते हैं तभी सम्यग्दर्शन पूर्ण माना जाता है। जिस प्रकार किसी मंत्र में से एक अक्षर निकाल दिया जाय तो वह मंत्र अपना फल नहीं दिखला सकता उसी प्रकार किसी एक अंग के कम होने पर भी सम्यग्दर्शन अपना फल नहीं दिखला सकता।
पाठ मदों कात्याग-मद शब्द का अर्थ अभिमान है। अपनी किसी विभूति आदि का अभिमान करना मद है, संक्षेप से उसके आठ भेद हैं। कुल का मद-जिस कुल में संतान परंपरा से जो अपने माता पिता के रजोवीर्य की शुद्धता चली श्रारही है, जिसमें धरेजा नहीं होता, स्त्री-पुनर्विवाह नहीं होता ऐसे अपने पिता के कुल को कुल कहते हैं। उस कुल का अभिमान करना अथवा अपने कुल में कोई राजा सेठ आदि बड़ा आदमी होगया हो उसका अभिमान करना कुल का अभिमान है।
दूसरा जाति का मद है। माता के कुल को जाति कहते हैं उसकी शुद्धता का बड़प्पन का या उसमें होने वाले राजा सेठ आदि का अभिमान करना जाति का अभिमान है। ज्ञान का अभिमान करना ज्ञान का मद है । अपनी पूजा प्रतिष्ठा का अभिमान करना पूजा या प्रतिष्ठा का अभिमान है। अपने बलका अभिमान करना