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जैन-दर्शन
मनुष्य दूर देश में गया हो और उसके मरने जीने की कोई बात सुनाई न पडे तो यदि वह नवयुवक है तो अट्ठाईस वर्ष बाद, यदि वह मध्यम अवस्था का है तो पंद्रह वर्ष बाद और यदि वह वृद्ध है तो बारह वर्षे वाद विधि पूर्वक उसका प्रेत कर्मकर देना चाहिये उसका श्राद्ध करना चाहिये और फिर यथा योग्य रीति से प्रायश्चित्त लेना चाहिये । यदि प्रेत कार्य करने के बाद फिर वह श्रजाय तो घी के घड़ों से तथा सर्वोपधि के रस से उसको स्नान करना चाहिए। तथा उसके समस्त संस्कार कराकर मौजी बंधन संस्कार कराना चाहिये और पहले की स्त्री के साथ उसका फिर से विवाह संस्कार करा देना चाहिये । इस सुतक पातक के मानने से घर की शुद्धि, शरीर की शुद्धि, मनकी शुद्धि, व्रतों की शुद्धि, चारित्र की शुद्धि और अपने आत्माकी शुद्धि होती है, तथा इसी सूतक पातक के मानने से शुभ गति को देने वाले श्रेष्ठ धर्म की वा सुधर्म की प्राप्ति होती है । इसलिये भव्य जीवों को इस सूतक पातकका पालन अवश्य करते रहना चाहिये ।