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________________ - - - जैन-दर्शन २६५] को दश दिनका सूतक माना गया है। यदि प्रसूता स्त्री के पुत्र उत्पन्न हुआ हो तो उस माता को दश दिन तक तो अनिरीक्षण नामका सूतक लगता है अर्थात् दश दिन तक तो किसी को भी उसका दर्शन नहीं करना चाहिये । तदनंतर वीस दिन तक घर के किसी भी काम को करने का उसको अधिकार नहीं माना जाता। इस प्रकार पुत्र उत्पन्न करने वाली प्रसूता स्त्री को एक महीने का सूतक लगता है। एक महीने के बाद वह स्त्री जिन पूजा और पात्रदान के लिये शुद्ध मानी जाती है । यदि उस प्रसूता स्त्री को कन्या उत्पन्न हुई होतो उसको दश दिन तक अनिरीक्षण नामका सूतक है और बीस दिन तक घर के काम काज करने के अधिकार के न होने का सूतक है। इसके बाद पन्द्रह दिन तक उसको जिन पूजा और पात्रझान देने का अधिकार नहीं रहता। इस प्रकार उस कन्या उत्पन्न करने वाली प्रसता स्त्री के लिये पैंतालीस दिनका सूतक माना है। ऐसे भगवान जिनेन्द्र देवकी आज्ञा है । जो प्रसूता स्त्री अपने अज्ञान वा प्रमाद के कारण इस सूतक को नहीं मानती उसको भगवान जिनेन्द्र देव मिथ्यादृष्टिनो कहते हैं । वह सूतकको न मानने वाली स्त्री पापिनी हीनगोत्रवाली, दुर्गतियों को जाने वाली, भगवान जिनेन्द्रदेव की प्राज्ञाको लोप करने वाली, दुधा और सदाचार से रहित मानी जाती है। जहां पर ब्राह्मणों को तीन दिनका सूतक माना जाता है नदी पर क्षत्रियों को चार दिन का, वैश्यों को पांच दिन का और पादों को आठ दिनका सूतक मानना चाहिये । जिस घर में प्रसूति ही उस घरको सात सात दिन अथवा नौ नौ दिन बाद गोवर
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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