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जेन-दर्शन पांचवें छठे महीने में गर्भ गिर जाय तो उसको पात कहते हैं तथा सातवें आठवें नौ दशवें महीने में जो गर्भ बाहर आजाता है उसको प्रसूति कहते हैं । इस प्रकार भगवान जिनेन्द्र देवने अपने जिन शासन में बतलाया है। इनमें से जितने महीने का स्राव होता है माता के लिये उतने ही दिनका सूतक माना जाता है । तथा पिता आदि कुटुम्बी लोगों की शुद्धि केवल स्नान कर लेने मात्र से ही हो जाती है । इसी प्रकार जितने महीने का गर्भ पात होता है माता के लिये उतने दिनका ही सुतक माना जाता है तथा पिता
और उसके कुटुम्बी लोगों को एक दिनका सूतक माना जाता है। तथा प्रसूति होने पर पिता और उसके कुटुम्बी लोगों को दश दिनका सूतक माना जाता है । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और सच्छूद्रों के लिये कोई कोई लोग पंद्रह दिनका और कोई कोई लोग बारह दिनका सूतक कहते हैं । जो लोग क्रिया संस्कारों से रहित हैं उनको पंद्रहदिन का ही सूतक मानना चाहिये । यदि किसी क्षत्रिय या राजा महाराजा को कोई आवश्यक कार्य आजाय तो मंत्र और व्रतों की विशुद्धता के करण जिनागम के अनुसार उनके लिये थोडा सूतक भी बतलाया है । उस समय वे जिन पूजा अादि कार्यों को दूसरों के हाथ से कराते हैं । इसी प्रकार वे क्षत्रिय लोग अपने
आत्माको शांति पहुँचाने के लिये भगवान जिनेन्द्र देवकी आज्ञानुसार उस समय और भी धर्म कृत्यों को दूसरों के हाथ से कराते हैं । जिस मकान में प्रसूति होती है उसमें एक महीने का सूतक माना जाता है, तथा उसकी पूर्ण शुद्धि भगवान जिनेन्द्र देवने