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जैन- दर्शन
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स्त्री को भोजन के सयम में रजःस्वला होने का संदेह हो परंतु वास्तव में रजस्वला न हो तो उसे स्नान और आचमन कर फिर स्नान कर भोजन करना चाहिये । उसके बाद उसको फिर कोई सूतक नहीं है । यदि कोई स्त्री सूतक में वा पातकमें रजःस्वला हो जाय तो कोई शुद्ध मनुष्य पंचनमस्कार मंत्रका उच्चारण कर उसके ऊपर पानी के बार बार छींटे देवे तो वह स्त्री मंत्र के प्रभाव से उसी समय शुद्ध मानी जाती है । यदि कोई स्त्री ज्वर आदि किसी रोग से अत्यन्त पीडित हो और उस रोग से बहुत दुखी हो तथा उसी अवस्था में वह रजःस्वला हो जाय तो उसकी शुद्धि इस प्रकार करनी चाहिये कि चौथे दिन कोई दूसरी स्त्री उसका स्पर्श करे फिर स्नान आचमन कर उसका स्पर्श करे । इस प्रकार दश बारह वार वह स्त्री स्नान आचमन कर उसका स्पर्श करे। अंत में उसके सब वस्त्र बदलवा कर वह स्त्री स्नान कर लेवे | इस प्रकार कर लेने से वह रजः स्वला शुद्ध हो जाती है। रजःस्वता स्त्री जहां बैठी हो, जहां सोई हो वा जहां पर बैठ कर उसने भोजन किया हो उन सब स्थानों को गोवर मिट्टी से लीपकर शुद्ध करना चाहिये । अथवा जलसे धोकर शुद्ध करना चाहिये । इस प्रकार उसके रहने के स्थान को भी प्रमाद रहित होकर अच्छी तरह शुद्ध कर लेना चाहिये। जो पुरुष अपने अज्ञान के कारण रजःस्वला के आचार विचारों को नहीं मानता उसे शूद्र, क्रियाहीन और पापी ही समझना चाहिये । जो स्त्री अपनी अज्ञानता के कारण रजःस्वलाके आचार विचारों को नहीं मानती उसे भी शूद्रा ही समझना चाहिये । तथा