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नैन-दर्शन
परम स्थान सज्जातित्व नाम का परम स्थान है । जिस की कुल
और जति दोनों शुद्ध हैं उसके सजातित्व नाम का पहला परम स्थान होता है । पितृ पन को कुल कहते हैं और मातृ पक्ष को जाति कहते हैं । वंश परम्परा से चली आई मातृ पक्ष की रजो वीर्य की शुद्धि को जाति की शुद्धता कहते हैं तथा वंश परम्परा से चली आई पितृ पक्ष की रजो वीर्य की शुद्धि को कुल शुद्धि कहते हैं। इन दोनों की शुद्धि को साचतित्व कहते हैं । समातित्व विशिष्ट दुरुप को ही दान पूजा होम आदि करने का अधिकार होता है और सीक संस्कार होते हैं।
तिरेपन क्रियाओं में गृह्त्वों के सत्कार करने योग्य नीचे लिखी क्रियाएं हैं।
अाधान प्रीति सुप्रीति घृति मोद नातकर्म नामकरण वहिर्यान निपद्या अन्नप्राशन व्युष्टि केशवाप (चौलकर्म) लिपि संख्यान उप नीति व्रतावतरण और विवाह ।
उपनीति संस्कार का अर्थ यत्रोपवीत संस्कार है। सजातित्व विशिष्ट पुरुष को ही चञोपवीत धारण करने का अधिकार है । यज्ञोपवीत धारण करने वाले पुरुष को है चन होम दान पूजा आदि का अधिकार है। अन्तमें मृत्यु संस्कार भी एक संस्कार है । समाधि पूर्वक मरण ही श्रेष्ठ मरण कहलाता है । मृत्यु के अनन्तर निर्जीव शरीर का दाह संस्कार किया जाता है । इनका विशेष वर्णन शास्त्रों में विस्तार पूर्वक लिखा है। .