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জন-মাল चाहिये । तदनन्तर विधिपूर्वक स्वाध्याय करना चाहिये और करुणा धारण कर दुःखी जीवों का दुःख दूर करना चाहिये । यह ध्यान में रखना चाहिये कि जिनालय में न तो हँसना चाहिये, न शृंगार की चेष्टा करना चाहिये, चित्त को कलुषित करनेवाली कथाएं, काम क्रोधादिक को कथाए, देशकथा, राजकथा, स्त्रीकथा भोजनकथा श्रादि विकथाएं नहीं करनी चहिये, कलह नहीं करनी चाहिये, नींद नहीं लेनी चाहिये, थूकना नहीं चाहिये,
और चारों प्रकार के आहार में से किसी प्रकार का आहार नहीं करना चाहिये।
इस प्रकार प्रातः काल की क्रिया का निरूपण किया । अब आगे द्रव्य कमाने की विधि बतलाते हैं।
प्रभात की यह सब क्रिया कर चुकने पर श्रावक को द्रव्य कमाने के योग्य स्थान दूकान आदि पर जाकर अपने द्रव्य उपार्जन करने, रक्षा करने और बढाने में नियुक्त किये हुए मुनीम गुमास्ते वा अन्य काम करने वालों की देख भाल करनी चाहिये। यदि ऐसी सामग्रो न हो और स्वयं सब कुछ करना पड़े तो अपने धारण किये हुए जिन धर्म में किसी प्रकार का व्याघात न हो इस प्रकार से द्रव्योपार्जन करने के लिये स्वयं व्यवसाय करना चाहिये । राजाओं को न्याय पूर्वक प्रजाका पालन करना चाहिये, राजकर्मचारियों को राजा प्रजा की हानि-न करते हुए काम करना चाहिये और व्यापारियों को कमती बहती नाप तौल को छोडकर तथा खर कर्मों को छोडकर जीविका करनी चाहिये।