________________
-
-
जैन-दर्शन
२२५ मनुष्य सन्तान दर सन्तान रूप से मध्यम भोगभूमि में उत्पन्न हुए । इसी प्रकार मध्यम भोगभूमि के मनुष्यों की सन्तान उत्तम भोगभूमि में, उनको सन्तान अवपिणी काल को उत्तम भोगभूमि में, उनकी सन्तान मध्यम भोगभूमि में, उनकी सन्तान जघन्य भोगभूमि में और उनकी सन्तान अवसर्पिणी काल की चतुर्थ कर्मभूमि में उत्पन्न हुई थी। __पहले यहां बताया जा चुका है कि अवसर्पिणी काल के चतुर्थ काल के प्रारम्भ में तेजस्वी महापुरुष कुलकर होते हैं । उन्हें अवधिज्ञान होता है और उस अवधिज्ञान के द्वारा विदेह क्षेत्र के समान जातिव्यवस्था वर्णव्यवस्था आदि कर्मभूमि की रचना लोगों को बतलाते हैं। आपने अवधिज्ञान के द्वारा वे कुलकर प्रत्येक मनुष्य की उत्सर्पिणी काल की कर्मभूमि में रहने वाली जाति और वर्ण को स्पष्ट रीति से जान लेते हैं और फिर उस मनुष्य की वही जाति और बही वर्ण बतलाकर सन्तान दर सन्तान रूप से चली आरही वे ही जातियां और वे ही वर्ण उत्त समस्त लोगों में स्थापन कर देते हैं । इस प्रकार कर्मभूमि के प्रारम्भ से कर्मभूमि के साथ साथ जाति-व्यवस्था और वर्णव्यवस्था बराबर चलती रहती है । इस प्रकार सन्तान दर सन्तान रूप से जिस प्रकार मनुष्य जाति अनादि है उसी प्रकार उनकी अन्तर्जातियां भी सवकी अनादि हैं।
यह बात दूसरी है कि समय प्रवाह से कोई निमित्त कारण पाकर उनके नाम बदल दिये जाते हैं । जिस प्रकार अग्रवाल जाति के लोग अपने को राजा अग्र की संतान बतलाते हैं परन्तु
।